बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी ……? की तर्ज पर पेश है आज की चिट्ठा-चर्चा !

चिट्ठा चर्चा का भार हमने कुछ इसी तरह हथियाया जैसे आदमी अंगुली पकड़ने के बाद सीधे हाँथ पकड़ लेता है  , और फिर लगातार चर्चा करने से बचते रहे ; पर बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी की तर्ज पर पेश है आज की चर्चा !
चिट्ठों की चर्चा का मंच हमेशा ही ना कही जा सकने वाली अपेक्षाओं से घिरा होता है , ऐसा मेरा मानना है | सो पहली चिट्ठा-चर्चा में मैंने चित्र और नामों से परहेज कर कुछ लिंक्स सीधे सीधे देने का नया प्रयोग किया है , जो प्रथम दृष्टया अनाकर्षक लग सकता है | फिर भी ……
जिस पर मिली यह सीधी और सपाट टिप्पणी
चलिए हमारी भी शुभकामनाएं !
जीवन तनावों  से भरा है तो हाजिर  है इसका उपाय  “कायोत्यर्ग प्रेक्षाध्यान”

कायोत्यर्ग प्रेक्षाध्यान का एक चरण है जो शिथिलकरण की विधिवत्‌ एवं उन्नतिकारक प्रक्रिया है। कायोत्सर्ग परानुकंपी नाडी तंत्र को सक्रिय बनाता है और तनाव के मूल कारण बदल देता है। कायोत्सर्ग शरीर के अतिरिक्त दबाव को दूर करने में सक्षम है और इससे शरीर व मन को गहन शिथिल स्थित में ले जाया जा सकता है। कार्यात्सर्ग तनाव के दुष्प्रभावों से व्यक्ति को बचाता है।

जाड़े का मौसम भले ही अभी अपनी पूरी रंगत में ना हो …पर जरूरी है कि यह समझ लें …..

………. किसी जमाने में डाक्टर की सलाह के बाद स्वेटर पहना जाता था। जैसा कि नाम से पता चलता है स्वेटर अंग्रेजी के स्वेट शब्द से बना है। जाहिर है स्वेटर के मायने हुए पसीना लाने वाला। पहले लोगों को जाड़े का बुखार आने पर पसीना लाने के लिए डाक्टर एक खास किस्म के ऊनी वस्त्र को पहनने की सलाह देते थे। तब इसे कमीज के अंदर पहना जाता था। बाद में जब सर्दियों से बचाव के लिए कमीज से ऊपर पहने जाने वाले पहनावे भी चलन में आए तो भी उनके लिए स्वेटर शब्द ही चलता रहा।

अपने बीच सक्रिय रहा कोई चेहरा यदि चला जाए तो यह दर्द भी कितना चुभने  वाला हो सकता है इसीलिए …

…..पिछला सप्ताह ब्लॉग के लिए इसलिए बुरा था कि ब्लॉग पर लिटरेचर वाले लोग आमने सामने थे और वे छोड़ कर जा रहे थे, लेकिन कचरा पट्टी वाले शीर्ष ब्लोगर आनंद में. खैर उनका आनद स्वतः स्फूर्त है. वे चाहते भी यही है कि ये कहानियों और कविता वाले संजीदा लोग जम गए तो हमारा कचरा कौन जुगाली करेगा. मेरे सपने के बाद की इस ख़बर ने मुझे और अवसाद की स्थिति में पहुंचा दिया.

किसी के जाने के बाद हमारे  साथ अगर कुछ है तो उनका विपुल सृजन और बेशुमार यादें…..

……वे संडास में दाखिल होते हैं ताकि विचार कर सकें कि मनुष्य की बनाई दुनिया में क्यों बढ़ रहा है मनुष्य का विलगाव बाहर आकर वे काँपते दीखते हैं सिंक के पास उनके भूरे हाथों से बह रहा है ठंडा पानी कलाई के बुढ़ाते बालों से चिपकी हैं कुछ जल-बूँदें। उनके रूठे – से बच्चे अक्सर टाल जाते हैं साथ बाँटना मजाक और गुप्त बातें।

बलात किया गया कार्य बलात्कार होता है हम तो अब तक यही समझते थे पर कई तरह के बलात्कार की कड़ी में भाषात्कार भी हो सकता है ….

मनुष्‍य अपने जीवन में जितनी तरह के बलात्‍कार करता है, उनमें से एक बलात्‍कार भाषा के साथ भी होता है, जिसे अपनेराम ने ‘भाषात्‍कार’ की संज्ञा दे डाली है। जिस तरह बलात्‍कार के लिए कमसे कम दो की ज़रूरत होती है उसी तरह भाषात्‍कार में भी कमसे कम दो भाषाओं की ज़रू‍रत होती है। अगर दो भाषाओं का परस्‍पर मिलन सस्‍नेह, प्‍यार मौहब्‍बत के साथ होता है तो वह मधुर वैवाहिक संबंधों की तरह पवित्र होता है। पर अगर इन्‍हें जबरदस्‍ती मिलाने की कोशिश हो तो फिर यह भाषात्‍कार ही कहा जाएगा।

ताकत के दम पर कार्य हो तो सलाह ऐसी  मिलनी थी ही…..
हम तो आज तक ना समझ पाए कि…..
पर लोग मानते कहाँ हैं …?
कई प्रश्न अपने आप में सीख भी बन जाते हैं ……..
ब्लॉगरी के बारे में हम जान कर भी और जानना चाहते है तो जान लीजिये ….
ढोंगी बाबाओं की बढ़ती जमात और उन पर ऐसी चार्जशीट के बाद भी प्रार्थना उनसे ….?
आप समझ रहे हैं ना …..

…..मैं इसे मराठी में नहीं, बल्कि हिन्दी में लिख रहा हूं, तो वो तो मुझे वडा पाव में दबा कर खा जाएं! हालांकि हिन्दी में लिखने का अलग मजा है क्योंकि बहुत से पार्टी सदस्य हिन्दी से घोर नफरत करते हैं, और उनके सामने इस डायरी को लहराने पर भी वे इसकी ओर देखेंगे भी नहीं. वे तो सिर्फ और सिर्फ मराठी देखने-पढ़ने के लिए प्रोग्राम्ड हैं!

हम कहते तो बवाल हो जाता ब्लागरी की आधी दुनिया हमारे पीछे पड़ जाती कि…
क्या जीवन में पैसा ही सब कुछ होना चाहिए? अच्छा करने का जज्बा किसी भी उम्र में पैदा हो सकता है। जिनकी नजर अपनों से आगे देख ही नहीं पाती उन लोगों के लिए ही पैसा सब कुछ हो सकता है। पर…..
कल मैंने सुना घर को, सामने के पार्क से बतियाते, देखो! कौन आया है ?…
ऐसे डान के लिए भी इतनी मीठी सीख ?
ठीक है कि पुरूषार्थ की भूमिका भाग्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है लेकिन सिर्फ इतना कह देने भर से भाग्य का महत्व किसी भी तरह से कम नहीं हो जाता |
अपने देश की ही तरह  लगने लगे तो क्या कहा जाए ….?
लोग दुखी हो जाते हैं तो मनाना पड़ता है भाई ….! जाइए यहाँ पर और जानिये यह दर्द…..
वैसे तो ब्राह्मण-वाद  को गाली हम यदा -कदा देते ही रहते हैं पर …..यदि ?
पहले आदमी बदलता है या उसकी मान्यताएं पर …..
जिन्दगी में हैरानियाँ कम नहीं है पर हैरानी इस पर कि ….
एक शिकायत और पर उसका निदान कहाँ क्योंकि ….

यहां पुरुष शादी के बाद महिलाओं का सर नेम तो नहीं रखते पर अधिकतर पति, पत्नियों के साथ उनके घर में रहते हैं और यह गलत नहीं समझा जाता है।

चलते -चलते हमारी तकनीकी दिक्कतों का एक और निदान (छद्म -टिप्पणी कर्ताओं के लिए राम बाण)

चर्चा और उसके प्रारूप को लेकर  प्रारंभिक  झिझक है अपने मन में ( समझ आ रहा है कि चर्चा पढने और करने में कितना अंतर है ?) …… महीने में एक ही बार चर्चा का मन है सो आगे से कोशिश करूंगा कि महीने  भर के पसंदीदा और महत्वपूर्ण विषयों  को ही पेश  किया जाए | प्राइमरी के मास्टर को दीजिये अब इजाजत !!! और ….

चलते चलते एक जिज्ञासा – बचपन में  हमारे बड़े ताऊ कहा करते थे कि पिता को अपने सबसे बढ़िया यश -प्रसिद्धि प्राप्त कर चुके संतान  से लगाव होता है  ; जबकि माँ को अपनी सबसे कमजोर संतान से ! शायद इसे सरलीकृत कर के कहा जा सकता है कि ….. “पिता को सबसे बड़ी और माँ को सबसे छोटी संतान अधिक प्यारी होती  है “

क्या कहना चाहेंगे आप?
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यह प्रविष्टि प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI, प्राइमरी का मास्टर में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

40 Responses to बकरे की अम्मा कब तक खैर मनायेगी ……? की तर्ज पर पेश है आज की चिट्ठा-चर्चा !

  1. श्यामल सुमन कहते हैं:

    अच्छी लगी चर्चा।सादर श्यामल सुमन09955373288www.manoramsuman.blogspot.com

  2. मनोज कुमार कहते हैं:

    सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

  3. हिमांशु । Himanshu कहते हैं:

    हमने ध्यान से देखा-प्रथम दृष्ट्या इसका आकर्षण ही निहारता रहा । क्या कह रहे हो भाई ? अनाकर्षक कैसे ? – "सादगी भी तो क़यामत की अदा होती है !"पहली चर्चा की बधाई !

  4. हर बार चर्चा एक नयापन ले कर आए तो अच्छी ही लगती है। इस में कैसी झिझक? सुंदर चर्चा है। करते रहिए।

  5. ललित शर्मा कहते हैं:

    अच्छी चर्चा,सुंदर चर्चा-बधाई !

  6. samatavadi कहते हैं:

    बकरे की माँ का मालूम नहीं हम तो खैर मनायेंगे – लम्बा समय । बधाई । चर्चा जारी रखें – चाहे कानपुर में करें अथवा फतेहपुर में ।

  7. निर्मला कपिला कहते हैं:

    अच्छी है चर्चा शुभकामनायें

  8. बधाई हो मास्टरजी! चिट्ठा चर्चा का यह नूतन रूप बहुत अच्छा लगा.

  9. cmpershad कहते हैं:

    चर्चा का यह नूतन रूप अंधेरे में तीर चलाने जैसा लगा:) जब तक क्लिक न करें पता ही नहीं चलता कि हम किस ब्लागर को पढ रहे हैं॥

  10. 'अदा' कहते हैं:

    प्रवीण जी आपके चर्चा का इश्टाइल है अनोखापकड़ना था ऊँगली और पकड़ लिए पहुंचाचलिए इसी बात पर जबदस्त चर्चा चलाई हैकितने अच्छे चिट्ठों की पहचान बताई है

  11. Raviratlami कहते हैं:

    बढ़िया. चर्चादल में स्वागत है आपका.

  12. प्रवीण जी मजा आ गया….नया प्रयोग …सही है वैसे भी जब हम ब्लागिरी में खासा उपदेशात्मक होते हैं तो कहते हैं…"रचना महत्वपूर्ण है,,,रचनाकार नहीं..".:)

  13. Ghost Buster कहते हैं:

    बढ़िया स्टायल! अच्छे लिंक्स! बधाई.

  14. ★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★ब्लोगचर्चा मुन्ना भाई की★☆★☆★☆★☆★☆★☆★☆★♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ प्रवीणजी त्रिवेदीवैसे नाम प्रवीण तो चर्चा भी प्रवीण ही हुई ना सरकार!अब तक की चर्चाओ मे सबसे बढीया, लाजवाब चर्चा करी है आपने.बस आप यू ही लिखते रहे.आभार♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ ♥ निचे चटका लगाऎब्लोगचर्चा मुन्ना भाई की हे प्रभु यह तेरापन्थमुम्बई-टाईगर

  15. Meenu Khare कहते हैं:

    अलग ढंग की चर्चा अलग हट कर लगी. बधाई मास्टर जी.

  16. अनूप शुक्ल कहते हैं:

    जय हो! मास्टरजी हों तो ऐसे हों चाहे एक ही हों।फ़तेहपुर में जहां बिजली अपनी मर्जी की मालकिन हो और जब मन आये तब बाय कर जाती हो, नियमित नेट-ब्लागिंग करना जीवट का काम है।चर्चा की तारीफ़ हम का करे? अच्छा लगा, बहुत अच्छा लगा।मन खुश हो गया। इस चर्चा में जितने भी लिंक थे उन सबको पढ़ा। बहुत अच्छा लगा।अरे चर्चादल से जुड़ने की बधाई और स्वागत तो रह ही गया न हड़बड़ी में। दोनों कह रहे हैं सो जानियेगा।फ़िर से मास्टरजी की जय हो।

  17. रचना कहते हैं:

    aap ko is manch par daekh kar achcha lagaa . charcha kae links badhiya haen aur kewal links kaa jugaad naa karey please us post mae kyaa haen is par bhi charcha karey .

  18. अर्कजेश कहते हैं:

    मजबूत शुरुआत । प्रयोग अच्‍छा लगा , होते रहने चाहिए ।

  19. खुशदीप सहगल कहते हैं:

    चर्चा में इस तरह का अभिनव प्रयोग एक गुरु ही कर सकता था…आभारजय हिंद…

  20. बहुत मेहनत और कौशल से यह चर्चा तैयार की गयी है। लिंक बहुत अच्छॆ हैं। बल्कि आपने कुछ ज्यादा ही उम्दा माल एक साथ इकठ्ठा लगा रखा र्है। अनूप जी ही इतने मेहनतकश हैं जो सभी लिंक्स को पूरा पढ़कर तब यहाँ टिप्पणी करने लौटॆ। यह पक्का रहा कि आप सच्चॆ मास्टर और वे पक्के फुरसतिया हैं… :)आपका बहुत बहुत-स्वागत और कोटिशः बधाई।

  21. avinaash कहते हैं:

    सुंदर चर्चा. बधाई.

  22. कुश कहते हैं:

    मास्टर जी की चर्चा तो दस में से दस नंबर ले गयी.. लिंक्स तो सब कमाल थे.. आपका आना सुकून दे गया.. बस अब तो महीने में नहीं सप्ताह में एक पीरियड तो आपका बनता ही है..

  23. डा. अमर कुमार कहते हैं:

    आजके आपनि तॉ ग़ोज़ेब पाठ दिलेन, मास्टर मोशाई !वस्तुतः आजका यह उदाहरण चर्चा की सामयिक माँग है, वरना एक ढर्रा बनता जा रहा था कि लिंक्स तक पहुँचने की ज़हमत से बचते हुये, भाईलोग यहीं पर ’ जय हो’ ’सुघढ़ चर्चा’ ’मस्त चर्चा’ वगैरह ठोंक कर फूट लिया करते थे ! यदि कुछ सीरियस किसिम के प्रतिबद्ध ब्लॉगर हुये तो अपनी जागरुकता की मिसाल के तौर पर किंचित गाली गलौच कड्डाली । यदाकदा चर्चाकार को अँधा ठहराते हुये खुद उन्हें रेवड़ी न दिये जाने पर आक्रोशित आरोप-प्रत्यारोप तो आम था, अब तो चर्चा का एक जिम्मेदार विपक्ष भी तैयार हो गया सा दिखता है, हर सदन में हाज़िर.. और पूर्ण निष्ठा से अपना दायित्व निभाने वाले मान्यवर !चर्चाकार ने तो भाड़ झोंकी, अपना हाज़मा दुरुस्त नहीं, चबैना को दोष ?ऎसे में एकाध शिष्ट जन nice का प्रयोग करते भी देखे गये हैं !हचक के होमवर्क ठोंक देयो, हुये छात्रन की सिट्टी गुम !इस नाते मास्टर जी का यह प्रयोग दुरुस्त रहा ।पण, इधर मुम्बई टाइगर की ’ बड़े दुर्भाग्य की बात है ’ लिंक मिसगाइडेड मिसाइल हो रैली ऎ, मास्टर ।

  24. कई दिन बाद चर्चामंच पर देखना संभव हुआ है|खूब स्वागत है आप का| बढ़िया चर्चा !!

  25. PD कहते हैं:

    mere ghar me to papa ko mujhse aur mummy ko bhaiya se jyada lagav hai.. :)achchhi charcha master sahab. 🙂

  26. एक नये तरीके से की गई बहुत ही बढिया रही ये चर्चा…..धन्यवाद्!

  27. अल्पना वर्मा कहते हैं:

    बहुत ही व्यवस्थित और सुलझे हुए तरीके से की गयी चर्चा.मास्टर जी जो हैं!पहली चर्चा की सफलता पर बधाई.सभी ब्लॉग नहीं पढ़ सकी लेकिन कुछ लिंक यहीं से लिए हैं.आभार.

  28. Mired Mirage कहते हैं:

    चर्चा का यह तरीका पसन्द आया। बहुत से लिंक दिए हैं।घुघूती बासूती

  29. तो चिट्ठाचर्चा करते हैं आप भीहमें नहीं मालूम था कि अपनीपसंद जाहिर करते हैं आप भी।मास्‍टर जी मन बेहद प्रसन्‍न हुआआपको इस स्‍वरूप में देखकरवैसे मास्‍टरी का एक गुण है यह।एक शिष्‍य मैं भी हूं आपकाआपसे सीखने को सदा तैयारछड़ी देखकर ही डर लगता हैइसलिए सदा अधिक सीख जाता हूं मैं हर बार।

  30. ज्ञानदत्त G.D. Pandey कहते हैं:

    यह तो शुद्ध प्रवीण त्रिवेदी की मेधा दिखाती है चर्चा। इसमें बकरे की माइत्व कहां है?!

  31. मास्टर साहब का के पाए !चर्चा में सरसता और पूर्णता का सुन्दर योग है ..सुन्दर-सुन्दर पंक्तियाँ चुनीं गयी हैं ..आभार ,,,,,,,,,,,,,

  32. ->> आप सभी का धन्यवाद | मुझे पता है कि चर्चा और बढ़िया हो सकती थी ….उसके बाद भी आपकी इस स्तर की सदभावना और हौसला-आफजाई के लिए आपका आभार | कुछ दिक्कतों के बावजूद कोशिश रहेगी कि चर्चा में नियमितता बनी रहे |@ रचना जी ! आगे से कोशिश रहेगी कि अपने कुछ विचार और अधिक जोड़ सकूँ !@अफलातून जी !हम तो ठहरे ठेठ फतेहपुरिया सो "झाडे रहो कलक्टरगंज" में आड़े नहीं आने वाले ! चर्चा तो फतेहपुर से ही जारी रहेगी !!@ अनूप शुक्ल !फतेहपुर जैसे शहरों में एक बड़ी बाधा बिजली की भी है ……. पर ब्लॉग्गिंग के नशे का क्या ???@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी !कोशिश तो सच्चे मास्टर बनने की ही है …….आगे तो मनुष्य गलतियों का पुतला है !!@ कुश !अरे भाई पीरियड तो भइये हम दिन भर में पर्याप्त लिए ही रहते हैं ……….काहे 'चर्चा प्रमुख' को उकसा रहें हैं?@ डा. अमर कुमार !पक्ष – विपक्ष दोनों होने ही चाहिए …… !!बढ़िया और मीठा रस निकलेगा ?………….. और फिर जिम्मेदार विपक्ष हो तो क्या कहने……? –>>लिंक सही कर दिया गया है!@ अविनाश वाचस्पति !शर्मिंदा ना करें …….आप हमारे अग्रज और हेड-मास्टर है जनाब!!@ ज्ञानदत्त G.D. Pandey !हम भी ढूँढने की कोशिश कर रहे हैं !

  33. Kishore Choudhary कहते हैं:

    मेरे शब्दों पर एक निगाह डालने के लिए चिटठा चर्चा का आभार, वैसे प्रवीण त्रिवेदी जी को मैंने अपने साथ तब से पाया है जब मैंने ब्लॉग लिखना आरम्भ किया था.

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