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Monthly Archives: जुलाई 2007
ये क्या कर रहे हो चिट्ठाकारों
यहां मैं एक सवाल उठा रहा हूं. किसी को नाराज करने के लिए नहीं सिर्फ सवाल करने के लिए सवाल उठा रहा हूं.विभिन्न एग्रीगेटरों पर हाल में जो शीर्षक मुझे दिखे हैं उनमें से कुछ नीचे मैं दे रहा हूं, … पढना जारी रखे
चिट्ठाचर्चा, संजय तिवारी में प्रकाशित किया गया
7 टिप्पणियां
लो चन्द बातें
शिकार,जंगल औ सूखी धरती वे लिख रहे हैं ये चन्द बातें तो कोई तन्हाईयां बस सजाकर सवाल करते बिताता रातें कहीं दिशायें सवाल करतीं तो कोई दुनिया के रू-ब-रू है यहाँ रफ़ी की है याद जीवित हैं साथ भूली औ’ … पढना जारी रखे
Uncategorized में प्रकाशित किया गया
4 टिप्पणियां
एक पतनशील चर्चा
दरअसल चर्चा पतनशील नहीं है जो चिट्ठा आज चर्चा के लिए लिए चुना है वह लेखक द्वारा घोषित पतनशील गद्य है। पर उससे पूर्व सारी पोस्टें देखें यहॉं पर और यहॉं पर। प्रमोद अब जमे जमाए गद्यकार हैं तथा अपने … पढना जारी रखे
चिट्ठाचर्चा, मसिजीवी, chitthacharcha, masijeevi में प्रकाशित किया गया
6 टिप्पणियां
एक नई अंतर्लिंकित चिट्ठाचर्चा
हिंदी चिट्ठों की बढ्ती संख्या से हिंदी के देसी पंडित का सवाल पिछले दिनों उठाया गया ! सच है कि चिट्ठाकारी बढेगी तो इसके पाठक के लिए अपनी पसंद के चिट्ठे तक पहुंच पाना मुश्किल होता जाएगा ! चिट्ठाचर्चा जैसे … पढना जारी रखे
chitha charcha, chithacharcha, neelima में प्रकाशित किया गया
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धड़ाधड़ फ्राड पर तीरेनजर
तकनीकी व चिट्ठाई लेखन में दो मुद्दे और तीन-चार पोस्टें। पहले सागरभाई ने एक पोस्ट लिखी थी जिसमें क्लिक की गैर ईमानदारी की चर्चा थी- हमारा क्या है हो गए प्रेरित और लिख दिया– दरअसल इन्हीं फ्राडों के चलते गूगल … पढना जारी रखे
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4 टिप्पणियां
जहां गद्य ललित है कोमल है
प्रत्यक्षा जी की ने अपने चिरपरिचित काव्यमय गद्य शैली में रात पाली में काम करने वाले मेहनत कशों की जिंदगी को उकेरा है! यहां श्रम से संवेदना के बोझिल होते मन की कथा बखूबी कही गई है श्रम जो है … पढना जारी रखे
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पत्रकारिता का भटियारापन और वैज्ञानिक का भटकता मन
विर्मशात्मक पोस्टों में से मैं दो पोस्टों की चर्चा करना चाहूँगा – पहली और वाकई दमदार पोस्ट है नीरज रोहिल्ला की विज्ञान और प्राद्योगिकी में एक गालीय घोड़े की परिकल्पना। क्या बात है- सौभाग्य से हम चिट्ठाकारों में नीरज, मिश्राजी, … पढना जारी रखे
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कविता की रसधार में
बांझ कौन है ? कविता मान्या जी के भीतरी आक्रोश को उजागर करती कविता है ! इसमें कविता का महीनपन न होकर सवालों की स्थूलता ज्यादा है! यहां कविता का संवेदना संप्रेषण कविता की शैली पर हावी होता दिखाई दे … पढना जारी रखे
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दाग अच्छे हैं
हिंदी की चिट्ठाकारी में ‘जारी’ साधुवाद युग की ही तरह राष्ट्रपति भवन में ही ऐसा ही युग जारी था कलाम गए तो राहत की सांस ली गई। बिहारी बाबू और खुलासा कर बता रहे हैं- अब आप ही बताइए न … पढना जारी रखे
चिट्ठचर्चा, chitha charcha, chithacharcha, masijeevi में प्रकाशित किया गया
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काव्यचर्चा बनाम चिट्ठाचर्चा ..
कविताओ से चाहे लोग जितेन्द्र जी की तरह भागे भागे फ़िरते हो और भले ही समीर जी से बात करते हुए हमे पकड कर कविता सुना दिए जाने का डर लगता हो :)पर सत्य यह है कि कविता आज के … पढना जारी रखे
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