नमस्कार , स्वागत है आपका चिठ्ठा चर्चा में.. सबसे पहले तो पिछली चिठ्ठा चर्चा पर दी गयी शुभकामनाओ के लिए आप सभी का धन्यवाद.. कल की रात पार्टी बढ़िया रही.. आप सबका केक ड्यू रहा.. जल्द ही मिल जाएगा.. 🙂
अब चलते है आज की पहली पोस्ट की ओर.. लेकिन उस से पहले आइये जानते है.. सी. एम. प्रसाद साहब इस पोस्ट के बारे में क्या कहते है..
जैसा कि आपने कहा कि ई-लेखन अपने शैश्व काल में है, समय तो लगेगा ही। दूसरा कारण है पुरानी पीढी के वरिष्ट साहित्यकारों का इस नई तकनीक से नहीं जुड पाना। यदि कम्प्यूटर और हिंदी की थोडी जानकारी उन्हें मिल जाय तो शायद वे भी इस लेखन में शामिल हो॥
अब देखते है जगदीश्वर चतुर्वेदी जी क्या कहते है इस ब्लॉग पर..
हिन्दी के ब्लागरों और वेबसाइट के संपादकों में अभिव्यक्ति की जितनी लालसा है उतनी मेहनत वे अंतर्वस्तु जुटाने के लिए नहीं करते। सारवान अंतर्वस्तु के बिना सारी सामग्री जल्दी ही प्राण त्याग देती है। इसके बाद यदि ब्लागर में ब्लॉगलेखन के नाम पर अहंकार हो तो इसे कैंसर ही समझना चाहिए। वेबलेखन में दंभ कैंसर है।
ब्लॉगिंग दंभ की नहीं सहयोग और संपर्क की मांग करती है। हममेंसे ज्यादा लोग लेखन में दंभ के साथ जी रहे हैं,अपने दंभ के कारण स्वयं को महान घोषित कर रहे हैं। ब्लागिंग और वेब लेखन में महान नहीं बन सकते।
आये दिन छद्म नामो से ब्लॉग बनाकर लोगो पर व्यक्तिगत आक्षेप लगाये जाते रहते है.. कुछ लोग तो शिष्टाचार भूलकर ऐसे शब्दों का प्रयोग करने से भी नहीं चूकते जिन्हें शायद वे अपने परिवार में से शायद ही किसी को पढने दे.. ऐसे लोगो के बारे में जगदीश्वर जी लिखते है..
यदि लेखन के अहंकार में किसी की इमेज नष्ट करने पर आमादा हैं तो लेखक नहीं बन सकते। लेखक का का किसी की इमेज पर कीचड उछालना नहीं है। लेखन का लक्ष्य है कम्युनिकेशन। कम्युनिकेशन तब ही होता है जब आप दंभ से पेश न अएं। हिन्दी के नेट लेखकों का एक बडा हिस्सा लेखन के दंभ की बीमारी का शिकार है वह इस क्रम में वेब लेखन के प्रति अन्य को आकर्षित नहीं कर पा रहा है।
जो लोग ऐसा लेखन अपने ब्लॉग पर करते है वे ये नहीं जानते कि लेखन कई सालो तक जिंदा रहता है.. उनका लिखा नेट पर कई समय तक मौजूद रहेगा.. नया आने वाला व्यक्ति जब आपके ब्लॉग को पढता है.. उसी के अनुरूप अपनी धारणा बनाता है..
ब्लागिंग का आधार है विनम्रता। सहभागिता। शिरकत। दिल जीतना। ब्लागिंग में आप किसी के भी व्यक्ति स्तर परखच्चे उड़ा सकते हैं। कुछ देर पढने में भी अच्छा लगता है लेकिन बाद में ऐसा अपना ही लिखा खराब लगने लगता है ,प्रेरणाहीन लगता है। अपने किसी काम का नहीं लगता। कहने का तात्पर्य यह है कि लेखन के समय इस बात ख्याल जरूर रखा जाए कि इस लेखन को आखिरकार कुछ दिन,महीने,साल जिंदा रहना है। ब्लागर अपने लेखन को कितना दीर्घायु बनाता है यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह संबंधित विषय पर कितनी गहराई में जाकर सोचता है और अंतर्वस्तु को विकसित करने में कितना परिश्रम करता है।
जो लोग केवल पाठको या फिर टिप्पणियों के बारे में ही सोचते है.. कई ब्लोगर ऐसे है जो अपने स्टेट्स को दुसरो के स्टेट्स से मिलाकर देखते रहते है.. कई लोग इस बात से परेशां रहते है कि किसे कितनी टिपण्णी मिली… उनके लिए चतुर्वेदी जी कहते है..
ब्लॉगिंग की मूर्खता ही है कि हम दावा करते हैं कि हमारे पास इतने पाठक हैं ,मेरे नेट पर इतने लोग आए। सवाल लोगों के आने और जाने का नहीं है सवाल अंतर्वस्तु का है। सत्य के उद्घाटन का है। ब्लॉगर के पास जितना बड़ा सत्य होगा उसका आधार उतना ही मजबूत होगा। हमारे ब्लॉगरों ने सत्य के बड़े रूप को त्यागकर टुकड़ों में अपने को बांट दिया है।
मुझे नहीं पता कि इस लेख से आपको क्या लगा पर मुझे कम से कम ये आत्मावलोकन जैसा लगा.. इस पोस्ट को पढिये और अपने विचार रखिये..
राम नगर, कंकर खेड़ा, मेरठ केंट यू.पी. से समीर जी ने ब्लॉग तीसरा खम्बा से ये सवाल पुछा..
मैं कोर्ट मैरिज करना चाहता हूँ जिस से मेरी होने वाली पत्नी, साला और सास सहमत हैं, मेरे घर वाले भी सहमत हैं। कोर्ट मैरिज करने वाले को क्या करना होगा? मेरी उम्र 30 व होने वाली पत्नी की उम्र 26 वर्ष है। किसी ने मुझे बताया है कि कोर्ट मैरिज करते हैं तो यू.पी. में सरकार पचास हजार रुपया देती है क्या यह बात सही है?
जवाब में वकील साहब ने पोस्ट के माध्यम से इनकी शंका का समाधान किया है.. क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि उन्होंने क्या जवाब दिया.. ? जवाब के लिए यहाँ क्लिक करे..
अंतिम पोस्ट उस बारे में है जिस पर आजकल बहुत चर्चा हो रही है.. देवबंद के जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद ने अपने एक सम्मेलन में फतवा जारी किया है कि मुस्लिम समुदाय देश के राष्ट्रगीत वंदेमातरम् का गान न करे।
इस पोस्ट पर पी सी गोदियाल जी अपनी टिपण्णी में कुछ यु लिखते है..
पी.सी.गोदियाल said…
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विनोद जी, अगर १९२० और १९४० के बीच की भारतीय राजनीति खासकर कौंग्रेस की राजनीति , उस समय के आतंरिक धार्मिक उन्माद पर अगर आप गौर करे और उसकी तुलना आज के राजनैतिक माहौल खासकर कौन्ग्रेस, मुस्लिम धार्मिक उन्माद से तुलना करे तो बहुत सी बातो में समानता मिलेगी ! कहने का तत्पर यह है कि उस १९२० से १९४० के बीच की स्थिति ने हमें १९४७ दिखाया, आज जो हो रहा है उससे आगे क्या होगा, इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है, ऐसा लग रहा है कि देश एक और विघटन की ओर अग्रसर है !
ब्लॉग चीर फाड़ पर एस एन विनोद लिखते है..
देवबंद के सम्मेलन में पारित यह प्रस्ताव कि इस्लाम में सिर्फ खुदा के सामने सिर झुकाया जाता है, इसलिए मुसलमान यह गीत न गाए, निंदनीय है। वंदेमातरम् भारत माता की वंदना है। वह भारत माता जिसकी संतान यहां रहने वाले सभी हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई आदि-आदि हैं। भला किसी को अपनी माता की वंदना से रोका कैसे जा सकता है? खुदा भी इसकी मंजूरी नहीं देंगे।
गृहमंत्री यह न भूलें कि अल्पसंख्यंकों की उपेक्षा अगर खतरनाक है तो तुष्टिकरण खतरनाक सांप्रदायिक प्रवृत्ति का पोषक है। बेहतर हो, कम से कम सरकारी स्तर पर हिंदू, मुसलमान के बीच भेदभाव को हवा न दी जाए। जरूरी यह भी है कि सम्मेलन में केंद्रीय गृहमंत्री की मौजूदगी के कारण उत्पन्न यह भ्रम कि फतवे को वैधानिकता मिल गई है, सरकार अपनी स्थिति स्पष्ट करे।
अंतिम पंक्तियों में विनोद जी कहते है..
कोई यह न भूले कि मुट्ठीभर कट्टरपंथियों को छोड़ देश का हर हिन्दू-मुसलमान सांप्रदायिक सौहाद्र्र के साथ शांति की जिंदगी व्यतीत करना चाहता है।
एक जागरूक पाठक होने के नाते आप क्या प्रतिक्रिया देना चाहेंगे इस पर ? क्या वन्दे मातरम् से किसी की भावना आहत हो सकती है या फिर ये सिर्फ एक सियासी चाल है ? आप जो भी सोचते है टिप्पणियों में अपनी राय दे..
सुंदर चर्चा। संक्षिप्त और सारगर्भित!
आज की चर्चा और पिछली टिप्पणी पर कुछ एक लाईना.. दिलों में आग है जैसी भी जिसने ज़िन्दगी कर लीकिसी ने घर जला डाले किसी ने रोशनी कर लीसँयमित व स्वस्थ चर्चा..माना कईयों ने शहर भर को कत्ल कर डालाग़ैरत से निग़ाहें मिल गयीं तो खुदकुशी कर लीचलिये मान लीजिये कि, हमने ही ग़ैरतमन्द खुदकुशी कुबूल कर ली ! यहाँ फ़ुर्सत कहाँ थी दुश्मनी की ज़िन्दगी कम थीबढ़ाया हाथ जब उसने तो हमने दोस्ती कर लीचल फिट्टेमुँह, यहाँ तो ब्लॉगिंग मँच दँभ की दुनिया में तब्दील होती जा रही है ?यह दुनिया खूबसूरत है मगर मँज़िल कहाँ यारोंइस सँसार में किसने ज़िन्दगी ये मुकम्मल कर लीपहले मुकम्मल ब्लॉगिंग के मुकाम पर तो पहुँचें, ज़िन्दगी तो फिर कभी मुकम्मल होती ही रहेगी !जाने यह कौन सा परमाणु युद्ध छिड़ा है, मित्रोंआख़िर कौन किससे किसके लिये भिड़ रहा हैगोसाईं जी कहे रहे कि, बिनु स्वारथ न होहिं प्रीति… पर यहाँ किसका और कैसा स्वार्थ फिर चहुँ ओर क्यों बेलगाम अप्रीति ?टेम्प्लेट पर सुझाव ?अभी बहुत ज़ल्दी है, क्योंकि..टेम्प्लेट जो कि अभी बहुत कुछ अधूरा छोड़ा गया है, महज़ एक बहाना हैपोस्ट और टिप्पणी को बहुत रो चुके, अब क्या टेम्प्लेट ही एक ठिकाना है ?पाबला जी, टिप्पणी बक्से के ऊपर का निर्देश आपके विशेष आदेश और अनुरोध पर लगा दिया गया है !
केक कब भिजबा रहे हो?पहले ये बताओ।मस्त चर्चा।
भूलसुधार :एक स्माइली चर्चाकार के लिये 🙂एक स्माइली दोस्तों और रक़ीबों के लिये 🙂एक स्माइली पाबला प्राजी के लिये 🙂एक स्माइली बाकी खुद अपने लिये 🙂
वन्दे मातरम !@ कुशमँगोल और हूण अपवाद हैं, पर इस मुल्क़ को अपना आशियाँ बनाने के बाद 15 वीं शताब्दी से ही तब के मुग़लिया रियासतदारों और आलिमों ने इस ज़मीं को मादरे हिन्द कहना शुरु कर दिया था । क्योंकि वह स्वयँ ही इस मिट्टी की सहिष्णुता, उर्वरा, जल सम्पदा को पाकर ’ सदावत्सले मातृभूमि ’ जैसी भावना से अभिभूत रहते आये हैं । पर वर्तमान हठधर्मिता को आप साक्ष्य जुटा कर भी सुलटा नहीं सकते ।ईमान के ज़िक़रे में फरमाया गया है कि, माँ के कदमों के तले ही ज़न्नत है ( हालाँकि माँ को सही सही परिभाषित नहीं किया गया है ), इसके आगे… हे नबी, इनसे कहो, मेरे प्रभु ने जो चीजें अवैध ठहरायी हैं वे तो हैं : अश्लीलता के काम – चाहे खुले हों या छुपे हों – और पाप – और सत्य के विरुद्ध अतिक्रमण और यह कि अल्लाह के नाम तुम किसी को साझीदार ठहराओ, जिसके लिये उसने ( अल्लाह ने ) कोई प्रमाण ही नहीं उतारा और यह कि अल्लाह के नाम पर कोई ऎसी बात कहो जिसके विषय में तुम्हें ज्ञान ही न हो ( कि यह वास्तव में अल्लाह ने कही है ) । हे आदम के बेटों, अल्लाह उपासना की सीमा से आगे बढ़ने वालों को हरग़िज पसन्द नहीं करता । सँदर्भ : तफ़हीमुल कुरआन पेज-223
संतुलित चिटठा चर्चा …जन्मदिन की बधाई {कुछ देर से ही सही } ..!!
बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर। जन्मदिन की एक बार फ़िर बधाई।
वन्दे मातरम! यह कैसा धर्म है जो राष्ट्र धर्म के आड़े आए?
’वन्दे मातरम्” से आहत होना विचित्र है । सब कुछ सियासी है । ब्लॉग डिस्क्रिप्शन में ’सक्रीय सामुदायिक मंच’ दिख रहा है । इसे सुधार लें – ’सक्रिय सामुदायिक मंच’ । सतत् टेम्पलेट परिवर्तन ने उदासीन कर दिया है मुझे । पता नहीं क्या सोच/कर रहे हैं आप सब !
@ डॉ अमर कुमारटिप्पणी बक्से के ऊपर के निर्देश के लिए मैंने न तो कोई कथित आदेश दिया है और न ही कभी कोई अनुरोध किया है।इसलिए इसके लगाने निकालने की प्रक्रिया में मुझे शामिल न बताया जाए।अनुरोध जैसी चीज का कोई सम्मान करने की बात कहे तो उसे स्वयं उन पंक्तियों पर ध्यान देना चाहिए।प्रतिक्रिया, क्रिया के बाद ही होती है शायद।वैसे चर्चा कुछ संक्षिप्त सी लगी 🙂 बी एस पाबला
स्पष्टतः व्यक्तिगत चर्चा। एकदम बकवास। जब समीर लाल जैसे नामी गिरामी को छोड़ दिया अपनी व्यक्तिगर खुन्नस के तहत तो अरविन्द मिश्रा की आशा करना ही बेकार है। मगन रहें आपसी भजन में। मैं हमेशा गलत के खिलाफ बोलता रहूँगा। यहाँ से मिटाओगे तो मेरे ब्लॉग पर पाओगे। कैसी साजिश करते हो।
चर्चा शुरु हुई और खत्म हो गई.. छोटी पर मस्त.. केक कि जगह काजु कतली भिजवा दो तो भी चलेगा…:)
कुशजिन्दगी मे कभी भी उनलोगों की चिंता नहीं करनी चाहिये जो "घर " को छोड़ कर दूसरी जगह इस लिये जा बसते हैं क्युकी उनको घर मे तकलीफ हैं । चिंता उनकी करनी चाहिये जो घर मे रह कर "लड़ते हैं " "विरोध करते हैं " आपतियां उठाते हैं " क्युकी वो घर को सबके रहने लायक बनाने मे अपना योगदान देते हैं । जो घर छोड़ कर ही चले गए वो हमे कितनी भी गाली दे क्या फरक पड़ता हैं क्युकी घर तो उन्होने छोड़ा हैं ।आज चर्चा मंच पर फिर तुमने अपनी काबलियत सिद्ध की और चर्चा मंच किसी ने भी शुरू किया हो एक ओरिजनल प्रयास हैं और इसकी सजगता से रक्षा की जानी चाहिये । ओरिजनल और कॉपी मे जो अन्तर हैं उसको तुम अगर समझ सकोगे तो निर्भीकता से इस मंच से जुडे रह कर इस पर न्यूट्रल हो कर चर्चा करते रहोगे । मुझे असहमति होगी तो मै यही तुमको आकर सही करुगी ना की कहीं दूसरा मंच बना कर अपनी काबलियत तुमको कोपी करके प्रूव करुगी ।ओरिजनल मंच अगर इम्प्रूवमेंट के लिये खोला गया हैं तो इसमे मंच बनाने वालो की तारीफ़ करनी होगी सो अनूप शुक्ल को बिना ये सोचे की लोग क्या कह रहे हैं अपने ही अंदाज मे इस मंच पर लिखते ही रहना चाहिये । ये मंच हमेशा " हिन्दी ब्लोगिंग " की एक धरोहर के रूप मे लिया जाएगा क्युकी ये ओरिजनल हैं और कॉपी तो ओरिजनल की ही होती हैं । वंदे मातरम जो वन्दे मातरम नहीं गाते हैं
सुन्दर और सारगर्भित चर्चा कुश जी
@ पाबला जीअरे साहब जी ये तो कुश का टिप्पू चच्चा को जवाब था .चर्चा नहीं 🙂
घर छोडने की भी तो कुछ मजबूरियाँ रही होंगी..किसी व्यवस्था की कुछ कारगुजारियाँ रही होंगी… -वरना यूँ ही बेवजह, पत्ते शाख से जुदा नहीं होते!!-समीर लाल 'समीर'ये उतना ही सत्य है जितना बेवजह पत्ते जुड़े नहीं रहते वाली बात!!–रचना जी, आज आपने मुझे ही नहीं, एक बहुत बड़े वर्ग को अपनी कथनी से ऐसा कहने को मजबूर किया है और आहत किया है. क्षमा चाहूँगा ऐसा कहने को. आप तो माफ कर ही दोगी, जानता हूँ."जिन्दगी मे कभी भी उनलोगों की चिंता नहीं करनी चाहिये जो "घर " को छोड़ कर दूसरी जगह इस लिये जा बसते हैं क्युकी उनको घर मे तकलीफ हैं ।"घर की तकलीफों को दूर करने लोग ज्यादा दूर जाते हैं, यह जान लिजियेगा.तकलीफ और मजबूरी में अन्दर करियेगा, दी!! वजहें आप नहीं जान पायेंगी बिना घर छोड़े तो हम आप अलग अलग बोट में सवार है अतः बहस निरर्थक..आप अपना कह गई..मैने अपना कहा. अब आगे आप बात बढ़ायेंगी भी तो आपके सम्मान में मेरा उत्तर कुछ भी न आयेगा, कम से कम यहाँ इस सो कॉल्ड पावन भूमि पर. तो कृप्या बस इसे हजम कर लें. सत्य निगलना कठीन होता है, फिर भी.
@रचना मुझे असहमति होगी तो मै यही तुमको आकर सही करुगी ना की कहीं दूसरा मंच बना कर अपनी काबलियत तुमको कोपी करके प्रूव करुगी ।शायद आप भूल रही है अगर आप यहाँ सही करने आओगी तो आपकी टिप्पणी भी मिटा दी जायेगी राजेश स्वार्थी के टिप्पणी की तरह .
लगता है कि जैसा ढेरों लोगों को प्रलोभन दिया गया है कि उन लोगों का विरोध करो तो ही चिठठा चर्चा में शामिल किया जायेगा, उसी प्रलोभन में रचना भी आ गई हैं। चलो, इस सपोर्ट से उनकी चर्चा होने लगेगी. बाकी लोग जायें भाड़ में। सही गलत की किसे पड़ी है।रचना, इनसे बचना, ये सब भाड़े के टट्टू हैं।
चिट्ठा चर्चा हिन्दी चिट्ठामंडल का अपना मंच है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया देते समय इसका मान रखें। असभ्य भाषा व व्यक्तिगत आक्षेप करने वाली टिप्पणियाँ हटा दी जायेंगी।
चिठठामंडल मतलब कौन? तुम, अनुप और विवेक या कोई और भी है?
स्वार्थी जी आप ऐसा करके खुद ही साबित कर रहे है कि हिंदी ब्लॉग जगत में एक गुट है. और वो गुट किसका है ये सब समझते जा रहे है. वो दिन दूर नहीं जब आप लोग मिलकर श्री समीर लाल जी का बंटाधार करवा देंगे. जहा आपके आकाओं की चर्चा नहीं होती तो वहा आते ही क्यों हो. पर क्यों नहीं आवोगे तुमको यहा आये बिना नींद भी तो नहीं आती होगी.जितना समय यहा सर खपाने में लगा रहे हो उतना कुछ सार्थक काम करने में लगाओ. वरना यु तिलमिलाना छोडो. ऐसे लोगो से घिरे होने के कारण ही कुछ अच्छे लोगो का नुकसान हो रहा है. भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे.बाय द वे सोचने वाली बात है कि समीर लाल जी ने रचना जी को तो जवाब दे दिया पर स्वार्थी जी के बारे में कुछ नहीं कह रहे है ऐसा करके वे उन्हें बढावा दे रहे है? कही ऐसा तो नहीं कि उन्होंने स्वार्थी से कहा हो कि तुम मेरे पक्ष में टिपण्णी करो.
यह अजीब लगता है कि बेहतरीन लिखने वाले और ईमानदार लोग भी घटिया लोगों का बचाव करते सिर्फ इस लिए नज़र आते हैं क्योंकि घटिया होते हुए भी उनके कुछ मज़बूत ब्लागर चेले भी हैं और वक्त पर वे उनका बचाव करने में सक्षम भी है ! अतः आप भी विवश हैं ऐसों का बचाव करने को …मुझे आप पर तरस आ रहा है !! आशा है आप अपनी कार्यशैली पर पुनर्विचार अवश्य करेंगे ! फिर आपमें और दूसरों में फर्क कहाँ रहा है ? अगर आज कड़वे लोगो के प्रहार खराब लग रहे हों तो कृपया आप अपने आपको, ऊपर से खूबसूरत मगर बेहद घटिया मनोवृत्ति के लोगों से, अपने को अलग रखें अन्यथा आपमें और दूसरों में कोई फर्क नहीं होगा ! ये गंदी मानसिकता के लोग आपके सम्मान को ले डूबेंगे दोस्त ! अपने मित्र को सादर !
सतीश जी ने बहुत सुन्दर बात कह दी..
सद्भावना के लिए शुक्रिया कुश !मगर विरोध पर मनन आवश्यक है बशर्ते पक्षपात पूर्ण न हो !
@ kush.sirf sundar baat kahakar satish je kee baat taalo mat amal me laaologo ko daraanaa dhamakaanaa chhod do kush bhaai
बर्तन खड़क रहे हैं, खड़कने दो। हम भी देख रहे हैं, देखने दो।
यहां पर भी मनमुटाव हो रहा है! अब तो लगता है किसी को हिन्दी ब्लॉगिंग का इतिहास(समाचार?) लिखना होगा और लगातार अपडेट करना होगा, ताकि सबसे पहले वही खोलकर क्या चल रहा है जाना जा सके, अन्यथा लोग समझ ही नहीं पाते कि क्या चल रहा है और किस बात का समर्थन करने का क्या अर्थ या अनर्थ हो जाएगा।कुश जन्मदिन की देर से ही सही बधाई।घुघूती बासूती
उब ओर वित्र्ष्ना होने लगी है अब इन संवादों से ………कमेन्ट मोडरेशन का उपयोग क्यों नहीं करते भाई ….
भाई कुशमन हुया खुशकि आप भी बोले कुछलेकिन इतना तो बतानाकि क्या है पैमानाजब हो टिप्पणी हटानाआज तक कितनी टिप्पणी हटाईजरूर बताना भाईहजामत तो बनाता ही है नाईहमें भी दे दिखाईकिन पोस्टों से टिप्पणियाँ हटाईअसभ्य भाषा की थी जो लिखाईव्यक्तिगत आक्षेप तो होगाक्योंकि जिसने है भोगावो तो करेगा ही योगानाम ले ले कर जब पोस्ट में लताड़ा जाता हैतब खुल जाता पाजामे का नाड़ा हैबजता फिर नगाड़ा हैअगर लग रही हो मेरी भाषा असभ्यतो चर्चाकार ही हो जायें अब सभ्यक्योंकि आंच नहीं आती जब तक न कहा जाये सत्यभाई कुशमन हुया खुशकि आप भी बोले कुछ
इस आपसी मनमुटाव को देख कर दुख हो रहा है…..
यहाँ एक प्रथा हैं "ब्लॉगर लपक लो " जैसे ही कोई नया ब्लॉगर आता हैं लोग उसको "लपक" कर अपने पाले मे डाल लेते हैं । फिर कुछ दिन तक उसको समझा समझा कर उन पर तीर चलवाते हैं जिन पर ख़ुद चलाना चाहते हैं । फिर धीरे धीरे उस से किनारा कर लेते हैं लेकिन इस दौरान उसको "तीर चलाने " माहिर तो कर ही जाते हैं । वसे कहते हैं बेवकूफ दोस्त से समझदार दुश्मन अच्छा होता हैं पर ये भी कहते हैं जिनियुस और बेवकूफ मे ज्यादा अन्तर भी नहीं होता हैं ।
सब से पहले भाई कुश को जन्मदिन की पुनः बधाई। फिर, धन्यवाद कि मेरी टिप्पणी का संज्ञान लिया। चिट्ठाचर्चा की सफ़लता का इससे अच्छा प्रमाण और क्या होगा कि कई चिट्ठेचर्चे ब्लाग खुल गये हैं और अब टीआरपी की होड़ चल रही है। स्वस्थ होड़ का स्वागत किया जाना चाहिए पर स्तर और भाषा पर नियंत्रण भी हो:)
तो बबली को महादेवी वर्मा की छटी औलाद ,,अलबेला खत्री जॉनी वाकर की पांचवी, उड़नतश्तरी को प्रेमचंद के असली वारिस ,ताऊ उर्फ़ ब्लोगवकील उर्फ़ उर्फ़ उर्फ़ को सबसे बड़ा ब्लोगर ,अजय झा उर्फ़ चाचा टिप्पू सिंह को दूसरे सबसे बड़े ब्लोगर उर्फ़ ब्लॉग श्री घोषित कर इस लडाई का अंत किया जाए बाकी चार पांच पदवी ओर पड़ी है उनके मिश्रा या ओर भी कई चेले है वे आपस में अपनी अपनी सुविधा अनुसार बांट ले .वे भी खुश रहेगे ओर इधर झान्केगे भी नहीं
वन्दे मातरम !!
लिखने वाले तीखी बात तुम्हे किसी को पदवी देने के जरूरत नही है …चच्चा ने तुम लोगो को जो पदवी दी है वो सही …याद है ना कि बताऊ ……और हा जितने भी बाकी है वो तुम रख लो ..की बोर्ड हमारा भी उतना ही तेज चलता है ….आगे से समझ कर लिखना चहे किसि भी नाम से लिखोगे जवाब हम इसी अपने नाम से देगे ..तुम्हारी तरह नही है समझे
टी आर पी बढाने के लिये सिर्फ़ यहा लिखा जाता है और किसि चिट्ठेचर्चे ब्लाग पर नही देखोगे
तीखी बात उर्फ़ कुश आप हो ……आपकी पदवी है ये ले लो मै पंकज मिश्रा अपने नाम से दे रहा हु
अंत मे कही गयी विनोद जी की बात से सहमत हूँ, भारत की सझी संस्कृति के बारे मे…और समीर जी के व्यक्तित्व को छुद्र विवादों मे न घसीटें तो अच्छा..पठनीयता एक ब्लॉगर को ब्लॉगर बनाती है विवाद नही!!
और कुश जी को जन्मदिन की बधाई
@ समीर जी,आपने 'घर' छोड़ दिया शायद इसलिए इंसान बन पाए …अगर 'घर' में रहते तो सिर्फ जहर ही उगलते..!!घर छोड़ना प्रकृति का नियम है….पंख-पखेरू…इंसान ……फिर चाहे इक शहर से दूसरा शहर ही क्यूँ न हो…!!और कुश जी को जन्मदिन की बधाईवन्दे मातरम !!
कुशजी को जन्मदिन की बधाई.यह टेम्पलेट बहुत सुन्दर है, यद्यपि, कुछ सुधार अपेक्षित हैं:-१. रीसेंट पोस्ट्स के दो विजेट हैं, एक साइडबार में, दूसरा बौटम में. एक ही रहे, साइडबार में, तो बढ़िया.२. सारे विजेट साइडबार में रहें तो ठीक. बहुत जगह है वहां.३. लिंक के रंग को थोडा और गहरा कर दें तो अतिउत्तम.इतना ही.
Mishra Pankajखिसयानी बिल्ली खम्बा नोचने आ ही गयी. नोचो नोचो तुम नोचोगे तो सबको बहुत आनंद आएगा. तुम पहचान की बात कबसे करने लगे? ब्लॉग वर्ल्ड में अनामियों का खेल तुम और तुम्हारे चाचा ताउओ ने ही खेला है अब जब खुद पे आई तो बोखला गए. टी आर पी किसको चाहिए उसका नाम हमसे मत खुलवाओ और हम कौन है ये जानने का तुमको कोई हक़ नहीं है क्योंकि तुम खुद ही कभी सुन्दर लाल के नाम से तो कभी स्वार्थी के नाम से लिखते हो. तुम लोग सीधे साधे लोगो को ही निशाना बना सकते हो. कब से देख रहे है हम कि तुम यहा वहा जाकर लोगो के बारे में उल्टा सीधा बोलते रहते हो. अब लिखने का सोचा तो याद रखना शेर को सवा शेर मिल ही जाता है
कुश, दिनों बाद दिखे हो…वेलकम बैक और जन्म-दिन की विलंबित बधाई।एक संयमित चर्चा के लिये बधाई…और यहाँ मैं भी रचना जी की बातों से सहमति जताता हूँ।जैसा कि डा० अनुराग कहते हैं ऊपर, इन तमाम व्यर्थ के विवादों और आरोप-प्रत्यारोपों से अब घिन होने लगी है। एक विनम्र विनती है आप सबसे, समस्त ब्लौगर-बंधुओं से- अपने ब्लौग-जगत में सौहार्द का माहौल वापस लायें…ये हमसब को मिलजुल कर प्रयास करना होगा।
तीखी बात तुम्हारी हरकतो से तो लगता है कि तुम सवा शेर नही पौवा हो समझे अगर शेर भी होते ना तो अब तक ये मुखौटा हटाकर बाहर आ जाते ..मि……आगे फ़िर से समझा रहा मान जाओ
और ये तुम्हे कौन सा नया रोग हो गया है कि सबको किसी और नाम से जानते हो स्वार्थी और सुन्दर्लाल मै हु …..क्या बात है भईया घर वालो को तो बराबर पहचानते हो ना :)?
और अगर देख रहे हो कि मै वहा जाकर उल्टा सीधा बोल रह हु तो कुछ करते क्यु नही बन्धु ..क्य करोगे जी मेल से मेरा खात मिटा दोगे?या ्खुद अपने सही नाम से आ जाओगे ?
अब आगे से नही आउगा इधर …हमेशा नही कभी कोइ हमारा प्रिय चर्चा करेगा तो आउगा …अब अपने मन भरके गरिया लेना जय राम जी की
अगर सवाल केवल अंतर्वस्तु का है तो जगदीश्वर जी अपने ब्लॉग पर यह क्या आत्मविज्ञापन ठेल रहे हैं – जगदीश्वर चतुर्वेदी। … कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफेसर। मीडिया और साहित्यालोचना का विशेष अध्ययन। तकरीबन 30 किताबें प्रकाशित। जे.एन.यू. से हिन्दी में एम.ए.एमफिल,पीएचडी। सम्पूर्णानन्द सं.वि.वि. से सिद्धान्त ज्योतिषाचार्य।उन्हे अपने लेखन को ही बोलने देना चाहिये!
nice