"मी विनायक सेन बोलतो "

पूने के उस सभागार में हेयर ट्रांसप्लां टेशन का अपना पेपर प्रजेंट करने के बाद अपने प्रशंसको के बीच बैठे डॉ मेहता अचानक अपनी तारीफ सुनकर भावुक हो उठे है .”.हम सब बहुत बौने लोग है   जिनके आसमान की हदे बहुत छोटी है ..असली लड़ाई तो विनायक ने लड़ी है “….अमेरिका में सेटल्ड रोज लाखो रुपये कमाने वाले उस डॉक्टर के व्यक्तित्व का ये रूप मुझे चौका देता है ….डॉ विनायक सेन उनके सीनियर थे….वे तब भी उनके हीरो थे …तब अपनी प्रतिभा के कारण…..
उनके गिलास को भरने के बाद मुझमे विनायक सेन को ओर जानने की उत्सुकता है ..पर वे एक ओर गेर पेशेवर स्टेट मेंट देते है ….”अब इस समाज में कोई क्रान्ति संभव नहीं है ..यहाँ कोई बैचेनी स्थायी नहीं रहती ” कुछ झुके सर सिर्फ हूम हां करते है ….ओर पेशेवर टिप्स की तलाश में नज़दीक आये कुछ युवा आहिस्ता से उठने लगते है .
कौन है ये विनायक सेन ?जिसको चिकित्सको का एक तबका भी अपने जमीर की आखिरी नस्ल के तौर पे देखता है ….
पच्चीस साल पहले देश के प्रतिष्टित मेडिकल कोलेज से निकलने के बाद वे उस रास्ते को चुनते है जिस पर मै ओर आप अब भी चलने में हिचकते है …..उनका कर्तव्य प्रेमचंद के मन्त्र ओर कफ़न पर “उफ़ ” करके ख़तम नहीं होता ……   वे उस  समाज के भीतर उसकी बेहतरी के लिए घुसते है  जिसके पास अपनी  व्यथा कहने के लिए वो भाषा या औजार नहीं है जिससे सभ्य समाज तारतम्य बैठाता है …या रुक कर समझने की कोशिश करता  है ….तमाम प्रतिकूलताओ ओर सीमायों के बावजूद उनकी प्रतिबद्ता एक अजीब सी जीवटता लिए न केवल कायम रहती है ….बल्कि अपनी  नैतिक स्म्रतियो को बेदखल  नहीं होने देती ….  वे अपनी उस  जिम्मेदारी  का निर्वाह  करते है जिसका बॉस  केवल उनका जमीर है ……….
प्रगतिशीलता के  तमाम बुलडोज़रो के बीच अपनी  बौद्धिक इमानदारी की आँख  न   मुंदने देने वाला इंसान  जो  अपने संशय ईमानदारी से  रखता  है …..  अचानक देशद्रोही कैसे हो गया  ?मेरे लिए ये भी ये यक्ष प्रशन है 
इस देशद्रोह को दिनेश राय  द्रिवेदी डिफाइन करते  है

यदि Sedition का अर्थ देशद्रोह हो तो हमें लोकमान्य तिलक और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए कहना होगा कि वे देशद्रोही थे जिस के लिए उन्हों ने सजाएँ भुगतीं। यह केवल एक शब्द के अनुवाद और प्रयोग का मामला नहीं है। दंड संहिता की जिस धारा के अंतर्गत डॉ. बिनायक सेन को दंडित किया गया है उसे इसी संहिता में परिभाषित किया गया है और इस का हिन्दी पाठ निम्न प्रकार हैं –
धारा 124 क. राजद्रोह 
जो कोई बोले गए या लिखे गए शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यप्रस्तुति द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा, या पैदा करने का प्रयत्न करेगा, या असंतोष उत्तेजित करेगा या उत्तेजित करने का प्रयत्न करेगा वह आजीवन कारावास से, जिस में जुर्माना भी जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से जिस में जुर्माना जोड़ा जा सकेगा, या जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा। 
स्पष्टीकरण-1 ‘असंतोष’ पद के अन्तर्गत अभक्ति और शत्रुता की सभी भावनाएँ आती हैं। 
स्पष्टीकरण-2  घृणा, अवमान या असंतोष उत्तेजित किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना सरकार के कामों के प्रति विधिपूर्ण साधनों द्वारा उन को परिवर्तित कराने की दृष्टि से आक्षेप प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं। 
स्पष्ठीकरण-3  घृणा, अवमान या असंतोष उत्तेजित किए बिना या प्रदीप्त करने का प्रयत्न किए बिना सरकार की प्रशासनिक या अन्य प्रक्रिया के प्रति आक्षेप प्रकट करने वाली टीका-टिप्पणियाँ इस धारा के अधीन अपराध नहीं हैं।

आंकड़े बताते है इस देश की आबादी २०१५ में शायद सबसे ज्यादा हो जायेगी .आंकड़े ये भी बत्ताते है पिछले कुछ सालो में संसद में मौजूद हमारे सांसदों में करोडपति सांसदों की संख्या में तीस प्रतिशत का इजाफा हुआ है ……आंकड़े याद दिलाते है सात लाख नौकर शाहों के इस देश में देश चलाने वाले नेताओ में तकरीबन कुछ लोग ही ग्रेज्यू वेट है ….आंकड़े भी अजीब होते है … पर  आंकड़े ये नहीं बताते के   देशभक्ति आनुवंशिक नहीं होती ……लोक संघर्ष ब्लॉग कुछ यूँ बताता है

 देश में जब तमाम सारी अव्यस्थाएं है तो उनके खिलाफ बोलना, आन्दोलन करना, प्रदर्शन करना, भाषण करना आदि लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं हैं लेकिन जब राज्य चाहे तो अपने नागरिक का दमन करने के लिए उसको राज्य के विरुद्ध अपराधी मान कर दण्डित करती है। डॉक्टर बिनायक सेन जल, जंगल, जमीन के लिए लड़ रहे आदिवासी कमजोर तबकों की मदद कर रहे थे और राज्य इजारेदार कंपनियों के लिए किसी न किसी बहाने प्राकृतिक सम्पदा अधिग्रहित करना चाहता है। उसका विरोध करना इजारेदार कंपनियों का विरोध नहीं बल्कि राज्य का विरोध है। इजारेदार कम्पनियां आपका घर, आपकी हवा, आपका पानी, सब कुछ ले लें आप विरोध न करें। यह देश टाटा का है, बिरला का है, अम्बानी का है। इनके मुनाफे में जो भी बाधक होगा वह डॉक्टर बिनायक सेन हो जायेगा।
यही सन्देश भारतीय राज्य, न्याय व्यवस्था ने दिया है।

कुछ तटस्थताओ  के लिए भी साहस चाहिए ..इस समाज के कई प्रवक्ता है ….कई स्वीकृत कई स्व घोषित …..जो  सिद्धांतो की भी बड़ी तर्क पूर्ण व्याखाए देते है …..यूँ भी    लिज़ लिजी देश भक्ति कभी कभी हमारे आदर्शो को भी धुंधला कर देती है ……विज़न को भी …

इतिहास तीन स्तरों पर चलता है: पहला, जो सनातन है यानी अपने प्राकृतिक वातावरण के सम्बन्ध में मनुष्य का इतिहास। दूसरा, वह पारंपरिक सामाजिक इतिहास है जो समूह या छोटे समूहों से बनता है। तीसरा इतिहास मनुष्य का न होकर विशिष्ट तौर पर किसी एक मनुष्य का होता है। दूसरे शब्दों में, इतिहास प्रकृति की ताकतों, समाज के ढांचे और व्यक्तियों की भूमिकाओं से गढ़ा जाता है। यह सूत्रीकरण फ्रेंच चिंतकों द्वारा दिया गया है जो मानते हैं कि यह मॉडल ही सम्पूर्ण इतिहास का मॉडल है। सम्पूर्ण इतिहास की संरचना में आदिवासियों के तुलनात्मक संदर्भों को बेहतर ढंग से व्यवस्थित किया जा सकता है। मसलन, भारत और अमेरिका के आदिवासियों में आंशिक समानता इसलिए है क्योंकि दोनों देशों में शासक वर्ग द्वारा जतलाए गए अधिकारों के संदर्भ में इनकी सामाजिक व्यवस्था और अनुक्रम तुलनात्मक रहे हैं। यदि योरोपीय औपनिवेशिक ताकतों ने अमेरिकी नेटिवों पर अपना धर्म थोपा, तो भारत में मौर्य साम्राज्य की राजसत्ता ने शाही गांवों के श्रमिकों शिविरों में रहने वाले आदिवासियों के साथ भी तकरीबन यही किया।

हाशिया एक विस्तृत लेख लिखता है …जिसके हर पहलु को गंभीरता से पढने की आवश्यकता  है

.बैरंग भी अपनी प्रतिक्रिया देता है  …ये कोई तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं है

डॉ सेन का जुर्म यह रहा कि उन्होने आदिवासियों के लिये काम करते हुए उनके अधिकारों की बात की, उन पर हो रहे जुल्मों का जिक्र किया। उन्होने हिंसा का हमेशा सख्त विरोध किया चाहे वह माओवादियों की हो या सरकारी बलों की! डॉ सेन पुलिस और पुलिस समर्थित गुटों द्वारा व्यापक पैमाने पर किये जा रहे भूमि-हरण, प्रताड़नाओं, बलात्कारों, हत्याओं को मीडिया की रोशनी मे लाये; पीडित तबके के लिये कानूनी लड़ाई मे शामिल हुए। उनका अपराध यह रहा कि वो उस ’पीपुल’स यूनियन फ़ॉर पब्लिक लिबर्टीज’ की छत्तीसगढ़ शाखा के सचिव रहे, जिसने मीडिया मे ’सलवा-जुडुम’ के सरकार-प्रायोजित  अत्याचारों को सबसे पहले बेनकाब किया।

   इतने गुनाह सरकार की नजर मे आपको कुसूरवार बनाने के लिये काफ़ी है। फिर तो औपचारिकता बाकी रह जाती है। इस लोकतांत्रिक देश की पुलिस ने पहले उन्हे बिना स्पष्ट आरोपों के महीनो जबरन हिरासत मे रखा। फिर कानूनी कार्यवाही का शातिर जाल बुना गया। सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद उनकी किसी हिंसात्मक गतिविधि मे संलग्नता को प्रमाणित नही कर पायी। सरकार के पास उनके माओवादियों से संबंध का कोई स्पष्ट साक्ष्य नही दे पायी। पुलिस का उनके खिलाफ़ सबसे संगीन आरोप यह था कि जेलबंद माओवादी कार्यकर्ता नरायन सान्याल के ख़तों को दूसरे व्यक्ति तक पहुँचाने का काम उन्होने किया। मगर इस आरोप के पक्ष मे कोई तथ्यपरक सबूत पुलिस नही दे पायी। उनके खिलाफ़ बनाये केस की हास्यास्पदता का स्तर एक उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि सरकारी वकील अदालत मे उन पर यह आरोप लगाता है कि उनकी पत्नी इलिना सेन का ईमेल-व्यवहार ’आइ एस आइ’ से हुआ था। मगर बाद मे अदालत को पता चलता है कि यह आइ एस आइ कोई ’पाकिस्तानी एजेंसी’ नही वरन दिल्ली का सामाजिक-शोध संस्थान ’इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट’ था। फ़र्जी सबूतों और अप्रामाणिक आरोपों के द्वारा ही सही मगर पुलिस के द्वारा उनको शिकंजे मे लेने के पीछे अहम्‌ वजह यह थी कि उनके पास तमाम पुलिसिया ज्यादतियों और फ़र्जी इन्काउंटर्स की तथ्यपरक जानकारियां थी जो सत्ता के लिये शर्म का सबब बन सकती थी। 

उत्सव धर्मी इस समाज  में साल के आखिरी दिन उम्मीदों  ओर आशयो से इतर बिनायक सेन पर लिखना पढना शायद अजीब लगे पर उनकी मौजूदगी किसी भी स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है ….ओर अपने भीतर सिमटे इस  समाज  के लिए भी …..वैचारिक असहमतिया ..उम्र कैद की हक़दार नहीं होती…..
सच मानिए आप शायद असहमत हो……..पर वे मुझ ओर आपसे कई ज्यादा बड़े देशभक्त है 





चाहूँगा कोई भी प्रतिक्रिया या विचार  रखते वक़्त इस चर्चा ओर टिप्पणियों पर भी  नज़र डाले …..
अरुंधति…..क्रान्ति….नक्सल वाद .आदिवासी ओर वेंटीलेटर पे ये देश

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attractive,having a good smile
यह प्रविष्टि डॉ .अनुराग में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

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