नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं चिट्ठा चर्चा के साथ।
जब नया-नया ब्लॉगर बना था तो कुछ पता ही नहीं था कि ब्लॉगिंग क्या होती है। वो तो जी-मेल का एक अकाउंट था उसे ही खोल कर मेल पढ रहा था और कुछ गूगल का प्रचार टाइप का था जिसे टीपता गया मेरा ब्लोग तैयार, वरना उन दिनों मैं समझता था कि यह बड़े लोगों की चीज़ है जैसे अमिताभ, आडवाणी आदि।
ब्लोग तो खुल गया पर कोई पढने न आवे। तो बड़ी कुफ़्त हुई कि इसे कोई पढता क्यों नहीं है। बाद में जाना कि ब्लॉग-एग्रीगेटर नाम की कोई चीज़ होती है, और फिर उसके बारे में, उसके योगदान के बारे में भी जाना।
फिर तो खोज-खाज के एग्रीगेटर तक भी पहुंचा। उनदिनों के दोनों एग्रीगेटर चिट्ठाजगत और ब्लॉगवाणी पर पंजीकरण हुआ, लगा कारू का खजाना मिल गया। धीरे-धीरे कुछ लोग आने शुरु हुए।
आज दोनों एग्रीगेटर नहीं हैं। पुराने ब्लॉगर तो एक-दूसरे से मिल-मिलाकर बातचीत कर लेते होंगे पर नए ब्लॉगर की क्या दशा-दुर्दशा होती होगी भगवान जाने। साथ ही चिट्ठाजगत द्वारा नए पंजीकृत हुए ब्लॉगरों की जानकारी भी मिल जाया करती थी। पर अब तो नए ब्लॉग के बारे में पता भी नहीं चलता।
मैंने यह बात एक पोस्ट में टिप्पणी देते हुए कही थी, आज इस मंच से पुनः कहना चाहूंगा कि जो स्थापित, श्रेष्ठ और सीनियर ब्लॉगर हैं वे ज़्यादा नहीं तो सप्ताह में एक दिन नए ब्लॉगर को दें, उनकी हौसला-आफ़ज़ाई करें। इससे न सिर्फ़ उनका मनोबल बढेगा बल्कि मार्गदर्शन भी होगा।
तो आइए आज की चर्चा शुरु करें
बहुत दिनों के बाद दिखे अंतरजाल पर डॉ. मनोज मिश्र। अरे वही मा पलायनम ! वाले। सोचा धर लाऊं। लगता है इतने दिनों बाहर बैठ कर कुछ विचार मंथन कर रहे थे। हम भ्रष्टन के और सब भ्रष्ट हमारे ……. पोस्ट द्वारा कहते हैं ‘यह बीत रहा साल तो घोटालों और महाभ्रष्टों की भेंट चढ़ गया।’ बात चुनावों की ओर ले जाते हुए कहते हैं सामाजिक परिवर्तन के नाम पर चुनावों में भ्रष्टाचार की जो गंगा बही है , अफ़सोस है इसकी चर्चा मीडिया के राष्ट्रीय पन्नों पर तो छोड़िये ,आंचलिक पन्नों पर भी नहीं हुई।
मैं तो बस इतना ही कहूंगा कि
सारा जीवन अस्त-व्यस्त है
जिसको देखो वही त्रस्त है ।
जलती लू सी फिर उम्मीदें
मगर सियासी हवा मस्त है ।
आपबीती… पर निखिल आनन्द गिरि एक बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति प्रस्तुत करते हैं। वे एक ज़रूरी कवि हैं – अपने समय व परिवेश का नया पाठ बनाने, समकालीन मनुष्य के संकटों को पहचानने तथा संवेदना की बची हुई धरती को तलाशने के कारण। उनकी कविता बनमानुस…हमें सोचने पर मज़बूर कर देती है, क्योंकि यह कविता मौजूदा यथार्थ का सामना करने की कोशिश का नतीजा है।
एक दुनिया है समझदार लोगों की,
होशियार लोगों की,
खूब होशियार…..
वो एक दिन शिकार पर आए
और हमें जानवर समझ लिया…
पहले उन्होंने हमें मारा,
खूब मारा,
फिर ज़बान पर कोयला रख दिया,
खूब गरम…
एक बीवी थी जिसके पास शरीर था,
उन्होंने शरीर को नोंचा,
खूब नोचा…
जब तक हांफकर ढेर नहीं हो गए,
हमारे घर के दालानों में….
इस कविता पर हमें बस इतना कहना है,
किन लफ़्ज़ों में इतनी कड़वी, इतनी कसैली बात लिखूं
शेर की मैं तहज़ीब निभाऊं या अपने हालात लिखूं
एक आलसी का चिठ्ठा पर गिरिजेश राव ने पुरुष की तरह एक कहानी लिखी है क्योंकि उनका कहना है, ‘मुझे स्त्री मन की कोई समझ नहीं है।’ हमारी साधारण समझ पर उन्होंने एक असाधारण कहानी रची है।
दोनों अपने अपने ब्लॉग पर प्रेम की कहानियाँ लिखते थे। जब वह लिखता तो लड़के की तरह ही लिखता था – अपनी देखी हर खूबसूरत समझदार लड़की से कुछ कुछ चुरा कर एक सुन्दरी को गढ़ता और आह भरते सोचते हुए लिख देता कि काश! उसे कोई लड़की अपनी जैसी मिली होती तो पूरे संसार को आसमान पर टाँग आता और धरा पर सब कुछ फिर से शुरू करता – मनु और श्रद्धा! आगे तो आप ब्लोग पर ही पढें।
यह कहानी हृदय फलक पर गहरी छाप छोड़ती है। एक स्त्री का अस्तित्व अपने अतीत, वर्तमान और भविष्य से जूझता हुआ खुद को ढूंढता रहता है। स्मृतियों और वर्तमान के अनुभव एक-दूसरे के सामने आ खड़े होते हैं तो लिखना रोक कर आईने में खुद को निहारती। चेहरे की लकीरों को निगाहों से मसल कर सलवटों को भूल जाती। उसे अपने बच्चे की सुध भी आती।
इस कहानी पर मुझे तो बस इतना कहना है,
क़तरे में दरिया होता है, दरिया भी प्यासा होता है,
मैं होता हूं वो होता है, बाक़ी सब धोखा होता है!
एक्यूप्रेशर और एक्यूपंक्चर में अंतर समझना है तो स्वास्थ्य-सबके लिए पर कुमार राधारमण की पोस्ट ज़रूर पढें। मॉडर्न मेडिसिन के अलावा एक्युपंक्चर और एक्युप्रेशर भी इलाज का बेहतरीन तरीका हो सकते हैं। इनमें बेशक इलाज में ज्यादा वक्त लगता है, लेकिन कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। हमारे देश में ये सिस्टम बहुत चलन में नहीं हैं लेकिन चीन में ज्यादातर इन्हीं के जरिए इलाज किया जाता है। हालांकि अब ये तरीके अपने यहां भी इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं।
एक्युपंक्चर पॉइंट्स के साथ मिलाकर योग किया जाए तो एक्यु योग कहलाता है। जैसे कि एक्युपंक्चर या प्रेशर से शुगर के मरीज के स्प्लीन (तिल्ली) या पैंक्रियाज पॉइंट को जगाया जाता है और साथ में शलभासन कराया जाता है, जोकि स्प्लीन या पैंक्रियाज के लिए फायदेमंद है। अस्थमा में फेफड़ों के पॉइंट्स को दबाने के अलावा प्राणायाम कराया जाता है। अगर मरीज को योग और एक्युप्रेशर पॉइंट, दोनों की जानकारी हो तो अच्छा है।
ये एक ऐसी विधा है जो अभी उतनी प्रचलित नहीं है, पर मुझे बस ये कहना है कि
ख़ुश्बू के बिखरने में ज़रा देर लगेगी
मौसम अभी फूलों के बदन बांधे हुये है।
बड़े लोग अपनी चलाते हैं, वे बदमिजाज होते हैं – अजित गुप्ता जी का कहना है अजित गुप्ता का कोना पर । कहती हैं,
“हम दोहरी जिन्दगी जी रहे हैं। एक तरफ अपने संस्कारों से लड़ रहे हैं जो हमारे अन्दर कूट-कूटकर भरे हैं और दूसरी तरफ उस पीढ़ी को अनावश्यक परेशान कर रहे हैं जिसने छोटे और बड़े का भेद मिटा दिया है।”
कुछ अच्छी सीख देती इस पोस्ट में वे कहती हैं,
“यहाँ ब्लाग जगत में हम जैसे लोग भी आ जुटे हैं। अपने बड़े होने का नाजायज फायदा उठाते रहते हैं और लोगों को टोकाटोकी कर देते हैं। किसी की भी रचना पर टिप्पणी कर देते हैं कि यह ठीक नहीं है, वह ठीक नहीं है। इसे ऐसे सुधार लो उसे वैसे सुधार लो। कहने का तात्पर्य यह है कि हम जैसे लोग अपनी राय का टोकरा लेकर ही बैठे रहते हैं।”
इस मुझे तो बस इतना कहना है,
चाहकर इसलिए सच कह नहीं पाया
सचकहा जिससे भी सच को सह नहीं पाया
धूल में तिनका मिला है बस इसी कारण
दूर तक वह संग हवा के बह नहीं पाया ।
pragyan-vigyan पर Dr.J.P.Tiwari हमेशा कुछ अलग और नया प्रस्तुत करते हैं। इस बार वो लेकर आए हैं राम के निवेदन का निहितार्थ (भाग-२)
कहते हैं
एक सत्संग में ‘सेतुबंध’ की चर्चा और चित्रण करते हुए कथावाचक बता रहे थे वानर – रीछ शिलाखंड ला-लाकर नल और नील को दे रहे थे. और वे दोनों उन शिला खण्डों पर राम -राम लिख कर सेतु का निर्माण कर रहे थे. तत्क्षण ही मन-मष्तिष्क में राम द्वारा ‘रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग’ की स्थापना का उद्देश्य कौंध गया, और वह उद्देश्य था -‘धर्म को विज्ञान से जोड़ने का’ . राम तो स्वयं ही विज्ञान रूप हैं – “सोई सच्चिदानंद घन रामा / अज विज्ञानं रूप बल धामा //”.
डॉक्टर तिवारी का मानना है ‘आत्मा और शरीर का भेद, आत्मा की अजरता – अमरता के सिद्धांत को जानकर ही समाजद्रोही, संविधानद्रोही, प्रकृति द्रोही और संस्कृतिद्रोही से लोहा लिया जा सकता है. सामाजिक और राष्ट्रीय हित के कार्य भी अध्यात्म और विज्ञान के सामंजस्यपूर्ण मेल से ही किया जाना श्रेयष्कर होता है। अध्यात्म जिसकी व्याख्या चरित्र सिद्धांत, पाप-पुण्य से करता है. विज्ञान उसी को ‘द्रव्यमान सिद्धांत’ से.’
विस्तृत जानकारी के लिए इस आलेख को पढें। हम तो बस यही कहेंगे कि,
हरि अनंत हरि कथा अनंता ।
कहहिं सुनाहिं बाहुबिधि सब संता ।।
आज बस इतना ही। छोटी ही सही, चर्चा की एक अंतराल के बाद शुरुआत की है आगे नियमित रहने की कोशिश रहेगी। फिर मिलेंगे। तब तक के लिए ..