मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू

मैं पिछले एक साल से ब्लोगजगत से पूरी तरह दूर था और अब भी सिर्फ सप्ताहंत में कुछ चिट्ठे देख लेता हूँ। इस चर्चा को पढ़ने के बाद इसकी सार्थकता की बहस में पड़े, उससे पहले ही बता दूँ कि हो सकता है इसमें ज्यादातर उन पोस्ट का जिक्र हो जो पुराने हो चुके हों, जिनका पहले ही किसी चर्चा में जिक्र हो चुका हो। अभी पिछली २-४ चर्चा पढ़ने के बाद ऐसा महसूस हो रहा है हिंदी ब्लोगजगत में महिला ब्लोगरों का प्रतिनिध्त्व बढ़ रहा है जो अच्छा समझा जाना चाहिये।

मैंने जितना पहाड़ो को देखा है उन्हें जिया है मैं यही समझता था कि पहाड़ियों में फैला सफेद धुँधलका बादलों का ही होता है लेकिन मेघालय की पहाड़ियों को देखकर गीताश्री का कहना कुछ और ही है, वो बताती हैं –

मेघालय की पहाडिय़ों पर कितना बादल है और कितना धुंआ….इसका अंदाजा अब लगाना मुश्किल है। ठंडी हवाओं में तंबाकू की गंध पैठ गई है। जहां जाइए, वहां धुंआ उड़ाते, तंबाकू चबाते, खुलेआम तंबाकू बेचते खरीदते लोग..कानून की धज्जियां उड़ाते लोग-बाग।

एक बात तो माननी पड़ेगी कि भारत के कानून में दम काफी है, कब से लोग-बाग धज्जियाँ उड़ाने में लगे हैं और ये कानून में अभी भी इतना दम है कि आप अभी भी इसकी धज्जिया उड़ा सकते हैं वरना तो इसको चिंदी चिंदी तार-तार हो जाना चाहिये था। गीताजी ने एक ऐसा विषय उठाया है जिसके लिये बहुत जागरूकता फैलाने की अभी भी जरूरत है।

बूढ़ा होना शाश्वत है, बिल्कुल आपके मेरे दादा, पिता-माँ की तरह। इसी बात को अनवर सुहैल हिंदी युग्म में कहते हैं –

तुम बूढ़े हो गये पिता
कि तुम्हारा इस रंगमंच में
बचा बहुत थोड़ा सा रोल
जरूरी नही कि फिल्म पूरी होने तक
तुम्हारे हिस्से की रील जोड़ी ही जाय

मैं भी हो जाऊँगा
एक दिन बूढ़ा
मैं भी हो जाऊँगा
एक दिन कमजोर
मैं भी हो जाऊँगा
अकेला एक दिन

तभी तो शायद किसी ने खूब लिखा है कि ये दुनिया आनी जानी है। इसे पढ़ने के बाद सोचा, समय से पहले कम से कम कहानी लिखनी तो आ जानी चाहिये। टीचर की खोज की तो हिमाँशु मोहन मिल गये जो कहानी लिखना ही सिखा रहे थे, ज्यादा कुछ तो नही सीख पाया लेकिन एक बात गाँठ बाँध ली-

“अरे तुम समझते नहीं हो, ब्लॉग-जगत में बहुत सेंसिटिव हो जाते हैं लोग, बड़े-छोटे के सवाल पर। सेंसिटिव समझते हो न? “

आप चाहें तो कोशिश कर सकते हैं कहानी लिखना सीखने की।

हमारा कहानी सीखने में अभी वक्त लगेगा तब तक आप प्रतिभा कटियार का लिखा मार्फत शैलेंद्र नेगी बाँचिये, लेकिन क्या? यही “पहला प्रेम क्या इतनी आसानी से हाथ छोड़ता है“, अगर आपको ये मौका मिला हो तो जरूर बताईयेगा।

दूर होने की हर कोशिश प्यार के समंदर में एक और डुबकी सी मालूम होती है. पाब्लो नेरूदा का पहला प्रेम हो या चेखव का सब यही सच उजागर करते हैं कि जिससे लागे मन की लगन उसे क्या बुझायेगी चिता की अगन. मुस्कुराहटों में या आंसुओं में, इंतजार में या मिलन में, प्रेम में या आक्रोश में बात वही है बस प्यार…..

क्रूज का सफर बहुत मजेदार होता हैं फूलटू मस्ती से भरा, हमने किया है इसलिये कह सकते हैं और आप विस्तार से जानना चाहें तो आशा जोगलेकर की मान्टोकार्लो के सफर का विवरण पढ़ियेगा।

निशांत फादर एंथोनी डी’मेलो की कहानी का अनुवाद करके सबसे अच्छी चाय की बात बता रहे हैं, बहुत अच्छी लघु कथा है पढ़ना और फिर सीखना ना भूलें।

देशनामा में खुशदीप सहगल का लिखा “भारत को आखिर ठीक कौन करेगा” पढ़ रहा था जो उन्होंने अजित गुप्ता की किसी पोस्ट के जवाब में लिखा है।

अजित जी और उनकी पोस्ट पर आए विचारों को पढ़कर मेरा ये विश्वास मज़बूत हुआ है कि हिंदी ब्लॉगिंग ने सार्थक दिशा की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है…मेरा मानना है कि अजित जी के इस प्रयास को अंजाम तक पहुंचाने के लिए हम बाकी सब ब्लॉगर्स भी अपनी भूमिका निभाएं…मेरे विचार से एक-एक कर हम सब अपनी पोस्ट पर देश के मुंहबाए खड़े किसी मुद्दे को उठाए और विचार मंथन करे कि उसके निदान के लिए क्या-क्या किया जा सकता है

ये सब पढ़कर मुझे हिंदी ब्लोगिंग के ३-४ साल पुराने दिन याद आ गये, जब हम इसी तरह का विचार विमर्श अनुँगूज के तहत करते थे। जिसमें एक विषय के ऊपर साथी ब्लोगरस अपने अपने विचार रखते थे। वो एक सार्थक पहल थी जो कि जारी रहनी चाहिये थी पर रह ना सकी। ऐसा फिर से शुरू हो सकता है बिल्कुल यहाँ इस चर्चा में, अगर कुछ लोग लिखने को तैयार हों।

मैं ये कभी नही समझ पाया कि दो लोगों की शादी में ३००-४०० लोगों का क्या काम लेकिन बात सिर्फ यहाँ पर ही खत्म नही होती। इसी बात पर विस्तार से बात कर रही हैं घुघूती जी, चाहें तो कई युग लग सकते हैं चाहें तो कुछ पल भर ही!

कन्यादान भी वही लेते हैं। सो याचक कौन है यह समझना कोई कठिन नहीं है।

इसके अतिरिक्त यह भी कारण है कि बेटी को इसी विपक्ष के बीच जाकर रहना है वह भी बिना तलवार या ढाल! सो उनसे पंगा लेकर उन्हीं के घर असहाय बिटिया को कैसे भेजा जा सकता है? सो बेहतर है कि मक्खन लगाए जाओ और मनाए जाओ कि बिटिया सुरक्षित रहेगी।

पल्लवी त्रिवेदी की इस पुरानी पोस्ट का जिक्र सिर्फ इसलिये कर रहा हूँ क्योंकि अपनी जिंदगी में भी किताबों का असर जादू सा है और ये भी एक कारण है हमारी ब्लोगजगत से दूरी का। अगर आपने अभी तक नही पढ़ तो ये रहा लिंक।

अभिषेक ओझा जब भी न्यूयार्क आते हैं उनसे मिलना जरूर होता है, आज उनको भी काफी अरसे बाद पढ़ा जो कि एक सूत्र पर चर्चा कर रहे हैं, सूत्र है – आई = आई+2, मुझे लगता है इसे ऐसे भी लिखा जा सकता है आई+2=व्ही लेकिन ये तभी संभव है जब कोड बगैर किसी त्रूटि के कंपाइल हो जाय। अभिषेक के इस दोस्त का कोड हमेशा आई+2 में अटक जाता है। कुछ पल्ले नही पड़ा ना, कोई बात नही यहाँ जाकर पढ़िये सब समझ आ जायेगा।

अनुराग मेरे पसंदीदाओं में से एक हैं उनकी मोरल आफ द स्टोरी आज पढ़ी यही नही उनको पढ़ा भी काफी अरसे बाद, मोरल आफ द स्टोरी वही है जो हलक से दो घूँट जाने से पहले और उसके बाद अलग अलग होती है। इनकी लिखी त्रिवेणी का कोई जवाब नही हार्ट अटैक पर क्या खूब लिखा है –

कोई दो महीने पहले महंगे रंगीन धागों से रफू हुआ था
कहते है रफू करने वाला शहर का सबसे काबिल रफूगर है …..
कल आधी रात कोई एक जिद्दी धागा बगावत कर गया

अगर हम कुमाँउनी चेले हैं तो शैफाली पांडे कुमाँऊनी चेली, इनकी पोस्ट पढ़ रहा था लाल, बॉल और पॉल ……. पोस्ट के टाईटिल से मुझे याद आ गया जब हम शान से कहा करते थे, अल्मोड़ा में ३ चीजें बड़ी प्रसिद्ध हैं – बाल (मिठाई), माल (रोड) और पटाल (घरों की छत और सड़को, सीढियों में लगे पत्थर)। आक्टोपस जी अभी तक खबरों में बने हुए हैं –

हे आठ पैरों वाले प्राणी ! यहाँ तुम्हारी भविष्यवाणी कभी गलत साबित नहीं होंगी, अगर कभी गलत हुई भी तो तुम कह सकोगे कि तुम्हारी भविष्यवाणी तो सही थी पर जातक की कुण्डली ठीक नहीं बनी थी पंडित ने जल्दबाजी करके कुण्डली बनाई है सारा दोष उस पंडित पर मढ़ कर हम उसकी नई कुण्डली बनाएँगे, और उसके अलग से पैसे वसूलेंगे

आज के लिये इतना ही, जाने से पहले अगर आप आँखों पर लिखे कुछ गीत जानना चाहें तो ये रहा हमारी ताजा ताजा पोस्ट का लिंक –

मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू,
सूना है आबसारों को बड़ी तकलीफ होती है।

हमारी पिछले शनिवार की छोटी सी जिंदगी जीने वाली चर्चा पर अपने विचार रखने वाले सभी साथियों को शुक्रिया। मनोज की शनिवारी चर्चा अपने निर्धारित समय ६ बजे से ९ मिनट पहले प्लेटफार्म चिट्ठाचर्चा पर पहुँचेगी।

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यह प्रविष्टि Tarun में पोस्ट की गई थी। बुकमार्क करें पर्मालिंक

3 Responses to मचल के जब भी आँखों से छलक जाते हैं दो आँसू

  1. वाणी गीत कहते हैं:

    बहुत अच्छे लिंक्स ..आभार ..!

  2. डा० अमर कुमार कहते हैं:

    इसे पढ़ा, और ’उपस्थित श्रीमान’ लगाया !

  3. जुगल किशोर कहते हैं:

    इसे पढ़ा, और ’उपस्थित श्रीमान’ लगाया !

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