नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं शनिवार की चिट्ठा चर्चा के साथ।
तो चलिए अब चर्चा शुरु करते हैं।
आलेख |
कारोबारी हितों के नीचे दबा है मीडिया बता रहे है भड़ास blog पर V I C H I T R A। स्रोत हैं आर वैद्यनाथन, साभार:- बिजनेस भास्कर। बताते हैं कि 500 स्नातकोत्तर विद्यार्थियों की एक सभा को संबोधित करते वक़्त जब उनसे जब यह पूछा गया कि उनमें से कितने मीडिया (प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक) का भरोसा करते हैं। इस जवाब में दस से भी कम हाथ उठे। आज की तारीख में सकरुलेशन बढ़ी और अखबारों की बिक्री भी। लेकिन क्या पठनीयता भी बढ़ी है? बहुत से लोग अखबार खरीदते हैं लेकिन हमेशा पढ़ते नहीं। इसकी दो वजहें है। पहली- निजी सौदेबाजी और दूसरा पेड न्यूज।कोई मीडिया हाउस उस कंपनी में हिस्सेदारी खरीदता है जो शेयर मार्केट में पहले से सूचीबद्ध है या सूचीबद्ध होने जा रही है। बदले में मीडिया हाउस कंपनी के पक्ष में कवरज करता है। कंपनी के बार में नकारात्मक खबरों को दरकिनार कर दिया जाता है। करोड़ों में खेलने वाली सैकड़ों कंपनियां आजकल मीडिया फ्रैंडली बनी हुई हैं। मीडिया ने भी समझौतावादी रुख अपना लिया है। महाराष्ट्र में हाल में हुए चुनाव में पेड न्यूज के कई उदाहरण दिखे। |
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सोना बनाने की रहस्यमय विद्या। के बारे में जानना चाहते हैं तो TSALIIM पर जाकर प्ढिए ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ का आलेख। बताते हैं कि सोना आखिर सोना होता है। वह सिर्फ महिलाओं को ही नहीं, आदिकाल से पुरूषों को भी आकर्षित करता रहा है। यही कारण है कि प्राचीन काल से सोना बनाने के लिए लोगों के द्वारा अनेकानेक प्रयोग किये जाते रहे हैं। ऐसे ही कुछ प्रयोगों और विधियों के बारे में बात कर रहे हैं इस बार।सोना बनाने के जितने भी किस्से और विधाएँ सुनने में आती हैं, वे सभी तर्कहीन और मानव मन की उड़ान ही हैं। इसके पीछे कारण सिर्फ इतना है कि सोना हर काल, हर समय में बहुमूल्य धातु रही है और अधिकाँश मनुष्य बिना कुछ किए बहुत कुछ पाने की इच्छा रखते हैं। मनुष्यों की इसी कमज़ोरी का फायदा उठाकर चालाक और धूर्त लोग ‘पारस पत्थर’ और ‘रहस्यमयी विद्या’ के नाम पर आम जनता को बेवकूफ बनाते रहे हैं। जबकि सच सभी लोग जानते हैं कि न तो ऐसी कोई वस्तु कभी कहीं अगर पाई गयी है, तो वह सिर्फ कल्पना और किस्सों में ही। |
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कविताएं |
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शार्टकट : दानवता सत्तासीन यह कविता प्रस्तुत की गई है चरैवेति चरैवेति पर अरुणेश मिश्र जी द्वारा। कहते हैं —ओ मेरे मन ! किसी महापुरुष की आरती उतारने का नेक ख़्याल उन्हें किस्लिए आया है वह भी बयान कर रहे हैं – औपचारिकता |
कविता की इन चंद पंक्तियों ने ही लगा जैसे नश्तर चुभो दिया हो छाती में। पर सच तो यही है। और इस सच से हमें रू ब रू करा रहे हैं बंटवारा शिर्षक कविता के द्वारा sarokaar पर arun c roy जी। बात को आगे बढाते कहते हैं माँ के दूध का सिर्फ़ मां के दूध का बंटवारा नहीं पिता के प्यार का भी हिसाब किताब लगाया जा रहा है पिता के आगे जाकर और भी बातें संजीदा और संवेदनशील हो जाती है बतकही और जाते जाते कवी कवि अपनी दुर्बलताओं को खोल कर सामने रखता है तथा अपने प्रेम की पावनता को दृढ़ता के साथ प्रमाणित करता है। अंतिम क्षणों में ——————————————————————————-
कर्मफल प्रस्तुत कर रही हैं अनामिका की सदाये…![]() आज अंतस के भीतर
कहीं गहरे में
झाँक कर देखती हूँ
और फिर
उस लौ तक पहुँचती हूँ
जो निरंतर जल रही है,
मुस्करा रही है,
अठखेलियाँ कर रही है …
जीवन-पर्यंत मिलने वाले
क्षोभ में भी .
यह बात निर्विवाद सत्य है कि संतुष्टि ही हमें सच्ची प्रसन्नता देती है। जीवन एक नाटक है। यदि हम इसके कथानक को समझ लें तो सदैव प्रसन्न रह सकते हैं।
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ग़ज़लें |
ये रहनुमा किस्मत बदल देंगे गरीब की अब तो बस यादों का सहारा है! जब-जब यादो की पुरवाई चलती है देखिए क्या होता है … जब भी तुम्हारी याद ने हौले से आ छुआ न सिर्फ़ इस ग़ज़ल के सारे शे’र एक से बढ़कर एक हैं बल्कि इन्होंने इसमें कुछ अछूते बिंबों का भी प्रयोग किया है। जैसे इस शे’र में है मछली बज़ार में इत्र की तलाश ! होगी तलाशे इत्र ये मछली बज़ार में एक वो भी ज़मान था था जब लोग उम्र काट देते थे किसी की याद में। इश्क़ के लिये भी वक्त चाहिये वक्त बे वक्त इश्क़ नही फ़रमाया जा सकता और किसी की याद मे डूबने वाले ज़माने तो ना जाने कहाँ खो गये। कितनी बख़ूबी इस भाव को उन्होंने क़लमबंद किया है इस शे’र में दुश्वारियां इस ज़िन्दगी की भूल भाल कर
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एक और इम्तिहान है-गज़ल जो प्रस्तुत है ग़ज़ल के बहाने-gazal k bahane पर और प्रस्तुत कर्ता हैं श्याम सखा ‘श्याम’ जी।है जान तो जहान है फ़िर काहे का गुमान है क्या कर्बला के बाद भी एक और इम्तिहान है इतरा रहे हैं आप यूं क्या वक्त मेहरबान है हैं लूट राहबर रहे जनता क्यों बेजुबान है है ‘श्याम ’बेवफ़ा नहीं हाँ इतना इत्मिनान है |
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बस आज इतना ही। |
छुट्टी हो तो पढ़ने का मजा ही कुछ और होता है.
सुन्दर चर्चा।
अच्छे लिंक मिले पढ़े जा रहे हैं। वित्तीय स्वतंत्रता पाने के लिये ७ महत्वपूर्ण विशेष बातें [Important things to get financial freedom…]केवल नामांकन ही बीमा पॉलिसी के लिये क्यों पर्याप्त नहीं है [ Why nomination only is not enough in Insurance ?]
इतने बढ़िया लिनक्स के साथ ..हमारी रचना को भी स्थान मिला ..बहुत बहुत धन्यवाद
आज की चर्चा का अंदाज़ निराला लगा….सारे लिंक्स बहुत महत्त्वपूर्ण ..आभार
मनभावन चर्चा मनोज जी!!आभार्!
bahut hi achhe links mile.aabhar.
bahut sundar charcha.
मेहनत से की गयी लाजवाब चर्चा….एक अनुरोध है चर्चा मंच से… चर्चा क्रम में जितने भी लिंक दिए जाते हैं, उन्हें खोलने पर उसी पेज में खुलता है और चिटठा चर्चा के पेज पर दिए दुसरे लिंक के लिए फिर से इसपर वापस आना पड़ता है….क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हर लिंक के लिए ऐसी व्यवस्था हो कि लिंक पर क्लिक करने पर यह एक अलग विंडो में खुले और चर्चा वाला पेज यथावत खुला रहे……
मेहनत से की गयी लाजवाब चर्चा!
जीयो मनोज बिटवा, बहुते सुंदर चर्चा किये हो. अम्माजी का दिल खुश होगया. ऐसन ही करते रहो. अम्माजी का आशीर्वाद पहुंचे.
गजब है भाई.. मैं तो आप लोगों की मेहनत देखकर ही दंग रह जाता हूं। आपने भी बढ़िया लिंक्स दिए हैं। सोनलजी, अजय जी, नीरज गोस्वामी जी के अलावा कुछ और महत्वपूर्ण लोगों के बीच रखकर आपने मुझे सम्मानित ही किया है। ये लोग बहुत शानदार लिखते हैं।
चर्चा बहुत ही बढ़िया रही!काफी लिंक मिल गये!
आप चर्चा प्रस्तुति में गज़ब की महनत करते हैं…पर श्रम के अनुरूप, साज-सज्जा का अंतिम प्रभाव नहीं बन पाता…कई जरूरी लिंक मिले…धन्यवाद आपका…
आदाब मिर्ज़ा साहब! बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था आपकी गजलों से रूबरू होने का..आज मौका दिया…शुक्रिया ! एक-एक शेर सवा शेर. गज़ब के अश'आर. इतनी ख़ूबसूरत गज्लाल से रूबरू करवाकर आज का दिन ख़ूबसूरत बनाने के लिए आपका शुक्रिया जनाब ! एक-एक शेर, सवाशेर.हौसला तो है परिन्दे में बहुत सच मानिएकैसे पर जाए फ़लक पर, पर बिखर जाने के बादकमाल की अश'आर..थम गया तूफ़ान शाहिद ये ख़बर किस काम कीआशियाने का हर इक तिनका बिखर जाने के बादगज़ब की अभिव्यक्ति…बस इतना ही कह पाऊंगा… शुभान अल्लाह…माशा अल्लाह !