टिप्पणीकार की चर्चा


मीनाक्षी

मीनाक्षीजी ने 18 अप्रैल को जो अपने ब्लाग पर पोस्ट लिखी तो उसपर रविरतलामी जी की टिप्पणी थी-यह तो आपने मिनी चिट्ठाचर्चा कर डाली!इसे चिट्ठाचर्चा मंडली में आमंत्रण की तरह स्वीकार करने का कष्ट करें। मीनाक्षीजी को कष्ट प्रदान करने के बाद रविरतलामीजी ने हमको कष्ट प्रदान किया कि मीनाक्षीजी को चर्चामंडली का निमंत्रण भेजा जाये। मीनाक्षीजी ने चर्चा मेरे पास भेजी यह कहते हुये कि पढ़ना आसान है लेकिन पढ़कर उस पर प्रतिक्रिया करना थोड़ा मुश्किल लेकिन उससे भी मुश्किल चिट्टाचर्चा में उस प्रतिक्रिया को दर्ज करना… नीचे लिखी हुई चर्चा को पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया भेजिए तो ही हम चिट्टाचर्चा में पोस्ट करेगे मुझे लगता है एक अकेले व्यक्ति के बजाय पाठक समुदाय बेहतर तरीके से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकता है इसलिये मीनाक्षीजी की चर्चा को मैं आपके सामने पेश कर रहा हूं। आप इस पर अपनी राय दें। मीनाक्षीजी ने इसे एक टिप्पणीकार की चर्चा के रूप में पेश किया है। इसमें कुछ पुरानी पोस्टों के जायके भी आपको मिलेंगे।

आगे मीनाक्षीजी द्वारा पेश की गयी चर्चा के पहले आप उनके ब्लाग पर आज की पोस्ट पदम तले त्रिपदम देखें। खूबसूरत नजारों के बीच सुन्दर त्रिपदम जैसी स्थितियों के लिये ही शायद सोने में सुहागा कहा जाता होगा।

मुझे विश्वास है कि मीनाक्षीजी द्वारा पेश की गयी चर्चा आपको पसंद आयेगी और वे हमारे चर्चामंडली की नियमित सदस्य होंगी।

टिप्पणीकार की चर्चा

आज चिट्टाचर्चा में चर्चा करने का अवसर मिला तो सोच में पड़ गए कि इतने विशाल ब्लॉग़जगत को एक ही चर्चा में कितना विस्तार दे पाएँगें…. अचानक एक उपाय सूझा कि क्यों ने अपनी ही पोस्ट पर आए सभी टिप्पणीकारों की ही चर्चा की जाए…. हमारी छोटी सी एक कोशिश को सराहने वाले सभी टिप्पणीकार आज की चर्चा के मुख्य पात्र बन गए..

मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं
कोशिशें गर दिल से हों तो जल उठेगी खुद शमाँ
श्यामल सुमन जी की टिप्पणी में लिखी दो पंक्तियों ने प्रभावित किया तो उसी के जवाब में कुछ कहने की इच्छा हुई….

मुश्किलों को गले लगाने की फितरत है अपनी
इसी कोशिश में जल उठती है शमाँ खुदबखुद
(ग़लत हो तो गुस्ताख़ी मुआफ़ कीजिएगा)

उन्होंने जीवन का हिसाब किताब लिखा जिसे हिसाब में कमज़ोर होने के कारण पहले तो हम बिना पढ़े ही वहाँ से निकल जाना चाहते थे लेकिन उत्सुकतावश पूरा लेख पढ़ गए। हमने ज़िन्दगी के गणित को कभी आँका नहीं बस प्रेम को सत्य मानकर दिल ने जो कहा वही करते रहे हैं और करते रहेंगे।

अरविन्द मिश्रा जी का ब्लॉग खोला तो वहाँ चन्दन की फिर चाँदी की राजनीति से घबरा कर हम साईं ब्लॉग पर पहुँचे ..हालाँकि वहाँ भी राजनीति से जुड़ी चर्चा पढ़ने को मिली…एक पंक्ति (सबसे आश्चर्यजनक तो यह ही कि हाथों की विकलांगता में यही पाँव ही सहारा बन जाते हैं !) ने हमें अपनी एक पुरानी पोस्ट की याद दिला दी…अगर वक्त हो तो ज़रूर देखिए….

द्विवेदीजी हों या ज्ञानजी दोनों के नियमित जीवन को आदर्श बनाने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं लेकिन जीवन को नियम में आजतक न बाँध पाए शायद इसी हार को पाकर मन बीच बीच में अशांत हो जाता है। द्विवेदीजी का अनवरत राजनीति पर चर्चा करना देख कर हम वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गए….लेकिन कार की सर्विस का उदाहरण रोचक लगा….

रचना जी ब्लॉगर्ज़ को पहचानने की पहेलियाँ ही भाती हैं इसलिए अजय जी के दूसरे ब्लॉग पर कुछ भी कभी भी कही गई बात पढ़ने की उत्सुकता जाग उठी… ब्लॉगजगत की विरासतों की घोषणा पढ़ कर खुशी हुई कि हमें त्रिपदम के कारण पहचान दी जा रही है. त्रिपदम की याद आते ही उनकी तलाश शुरु हो गई…जल्दी ही नए रूप में नए त्रिपदम (हाइकु) पोस्ट करेंगे. वैसे अजयजी को पोस्ट पढ़ते पढ़ते हम तो इसी नतीजे पर निकले कि हर ब्लॉग अपने आप में एक मज़बूत ईंट है , वह बात अलग है कुछ कँगूरे में सजी हैं और कुछ नींव की ईटें बनी हिन्दी समाज की इमारत को बुलन्द किए हुए हैं. लावण्यादी की नई पोस्ट के शीर्षक ‘यह देस है या परदेस है’ को पढ़कर मन में सवाल उठता है कि अपना देश परदेस जैसा क्यों लगता है… !! अपना घर कहाँ है…. साउदी अरब , जहाँ पति हैं… या दुबई जहाँ बच्चों की पढ़ाई के कारण अलग रहना पड़ा॥ या अपनी जन्मभूमि जहाँ पढाई खत्म होते ही शादी हुई और विदाई दूर खाड़ी देश में हो गई।
नारी शक्ति पर ही चर्चा करते हुए डॉ रूपचन्द्र जी के ब्लॉग पर एक कविता पढ़ने को मिली जिसमें नारी के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा पाया कि क्यों आदिशक्ति नारी को अबला कहा जाता है !!! यह एक बहुत ही रोचक प्रश्न है …वास्तव में उसके ममतामयी रूप को कमज़ोरी मान लिया जाता है… शायद कभी कभी नारी स्वयं अपनी ममता के आगे विवश हो जाती है तभी ऐसे प्रश्न उठने लगते हैं….

रविरतलामीजी की उत्साहवर्धक टिप्पणी ने तो हमारे अन्दर के नन्हें बच्चे को खुश कर दिया. रचनाकार हों या उनका हिन्दी ब्लॉग हो …. बिना पढ़े जा ही नही सकते… उनकी पहेलियों में दिमाग की कुछ ज़्यादा कसरत होती है इसलिए उधर का रुख ज़रा कम ही करते हैं॥ ब्लॉग जगत के इतिहास में ‘जूते की अभिलाषा’ (व्यंग्य) अमर हो जाएगी। कविता के माध्यम से आज के युग का कटु सत्य उजागर किया है.

संगीताजी का ब्लॉग खोला तो एक नई सूचना पढ़ने को मिली जिसे पढ़कर तो हम जितना हैरान हुए उससे ज़्यादा खुशी हुई… आशीषजी ने ब्लॉगर्ज़ पार्क में अनितादी और संगीताजी के साथ हमें भी देवी का दर्जा देकर खूब सारा प्यार और आशीर्वाद बटोर लिया।

ब्लॉगर्ज़ पहचान पहेली में रचनाजी का सबसे प्यारा नया रूप दिखाई दिया …एक नटखट, चुलबुली और शरारती बच्ची जो वक्त मिलने पर सबको गम्भीर मुद्दों से दूर मस्ती भरे माहौल में भी ला सकती हैं…. अपनी पहचान को ढूँढने में लगी नारी , परिवार से मोह ममता के कारण दाल रोटी चावल में व्यस्त रहना , फिर उसी हाल को कविता का रूप देना एक सच्चाई है लेकिन थोड़ी सी मस्ती करना भी ज़रूरी है…

अविनाश वाचस्पति जी काव्यात्मक टिप्पणी में बड़ी गहरी बात कह जाते हैं… उनके किसी भी ब्लॉग़ पर चले जाएँ , कीबोर्ड के खटरागी के मधुर राग पढ़ने को मिल जाएँग़े… मीठे धारधार व्यंग्य के माध्यम से सरलता से अपनी बात रख देते हैं।

ज्ञानजी को याद कर ही रहे थे कि उनकी टिप्पणी अमृतबूँद की तरह हमारे ब्लॉग पर उतर गई…. उनके ब्लॉग पर एक साथ ज्ञान की तीन तीन धाराएँ बहते देखा तो एक धारा की ओर रुख किया …. क्रोध से कैसे बचा जाए, उस पर काबू कैसे किया जाए…. क्रोध जो विवेक तो नष्ट करता ही है ,,,प्रभु के दिए सुन्दर रूप और सेहत को भी बदसूरत बना देता है….

रश्मि प्रभा जी की भावनाओं के मन्दिर में पहली बार जाने का मौका मिला… उनकी क्षणिकाओं में क्षण भर के लिए हम अपने ख्वाबों के गाँव में फूलों की बारिश में भीग उठे…

गौतम जी के ब्लॉग पर दुबारा जाने का मोह रोक न पाई… हरी मुस्कानों वाले कोलाज ने हमें अन्दर तक हिला दिया…देश के हज़ारों मोहित आँखों के सामने आने लगे…

समीरजी की टिप्पणी देखते ही एक बुज़ुर्ग की डायरी के पीले पन्नों पर दर्ज हरे हर्फ याद आने लगे॥ बहुत बार ऐसा हुआ है कि जो भी दिल की गहराइयों को छू लेता है उसे हम अपने सिस्टम में दर्ज कर लेते हैं..

अभिषेक ओझा के ब्लॉग पर हम उनके लेखन का ही नहीं पाककला का स्वाद भी लेते रहे हैं लेकिन टिप्पणी देने में आलस करते रहे …

वैज्ञानिक चेतना को समर्पित नाम कई नामों (ब्लॉगर्ज़) के साथ नित नई जानकारी लेकर आता है… सारा समय नया नया जानने के लालच में खत्म हो जाता है, टिप्पणी देने की सोचते हैं तब तक समय मुट्ठी से रेत जैसा फिसल जाता है.

कुश का लेखन भी लाजवाब है , इतना सजीव शब्द चित्र खींच देते हैं कि सब कुछ आँखों के सामने दिखने लगता है,,,आप खुद ही पढ लीजिए उनका अनुभव दस पैंतालीस की आखिरी मैट्रो का … स्मरणशक्ति भी गज़ब की है… हमारी बहुत पुरानी अल्मारी जिसमें ब्लॉग़जगत के कई ब्लॉग सजे हैं, उन्हें याद रही…

नीरजजी की खूबसूरत गज़लों से कौन वाकिफ़ नहीं है लेकिन हाँ जो नहीं जानते उनकी एक पोस्ट को पढ़ कर खोपोली घूमने का निश्चय ज़रूर कर लें…. अतिथि देवो भव: की उक्ति उन पर एकदम सही बैठती है।

इस चर्चा को चिट्टाचर्चा न कह कर टिप्पणीकार की चर्चा कहना ज़्यादा सही होगा ….

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29 Responses to टिप्पणीकार की चर्चा

  1. श्यामल सुमन कहते हैं:

    सिर्फ टिप्पणियों के लिए एक ब्लाग बन जाय।होगा चर्चित ब्लाग वह कहत सुमन समुझाय।।सादर श्यामल सुमन 09955373288 मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं। कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।। http://www.manoramsuman.blogspot.comshyamalsuman@gmail.com

  2. Arvind Mishra कहते हैं:

    चिट्ठाजगत /चिट्ठाचर्चा का एक और नया फलक और एक नई सृजनात्मक पहल -हिमांशु जी ऐसी चर्चा की सोचते तरह गए और मीनाक्षी जी ने चरितार्थ कर दिया !

  3. ताऊ रामपुरिया कहते हैं:

    बहुत लाजवाब और बिल्कुल नया अंदाज. बहुत आनन्द आया.रामराम.

  4. “टिप्पणीकार की चर्चा”में तो शीर्षक देख कर भरमा ही गया था..मुझे लगा कि आज की चर्चा किसी टिप्पणीकार के बारे में है..चर्चा अलग और रोचक लगी. धन्यवाद.

  5. संगीता पुरी कहते हैं:

    लगता नहीं … पहली बार चिट्ठा चर्चा की है … बहुत बढिया किया आपने … चिट्ठा चर्चा मंडली में शामिल होने की बधाई।

  6. अशोक पाण्डेय कहते हैं:

    चिट्ठा चर्चा का यह नया आयाम अच्‍छा लगा। इसे जारी रखा जाए।

  7. P.N. Subramanian कहते हैं:

    यह नवीनता बहुत अच्छी लगी. आभार.

  8. Shastri कहते हैं:

    मीनाक्षी जी जिस सहज तरीके से चर्चा करती हैं वह चर्चा को एक नया आयाम प्रदान करेगा. उनको चर्चाकार मंडली में शामिल किये जाने का अनुमोदन करता हूँ.सस्नेह — शास्त्री

  9. Rachna Singh कहते हैं:

    great work meenu how about becoming a regular charchakaar

  10. Raviratlami कहते हैं:

    धन्यवाद मीनाक्षी जी.चर्चा का यह निराला स्वरूप बढ़िया, मजेदार रहा.

  11. Udan Tashtari कहते हैं:

    यह अंदाज भी बहुत भाया-अब तो नियमित शुरु हो जाइये. शुभकामनाऐं.

  12. डा० अमर कुमार कहते हैं:

    सुन कर मैं आया चर्चा-रसोई में,कि, मुझे निकाल कर शायद कुछ पका रहीं हैं आप वैसे ख़ुशबू तो अच्छी आ रही है,बोले तो एक नायाब आग़ाज़ है” यहाँ एक आसार यह भी.. ..” हम हिंदी अच्छी लिख लेते हैं हमारा स्तर है ,वर्ग है, यह अलग बात है कि अभी हम दूसरों की कमी निकालने में ध्यान लगा रहे हैं |क्या करें पर कुछ का न तो स्तर है न वर्ग | न उन्हें लिखना आता है, न लिखे को पढना, सभी के लिखे को अच्छा कहे चले जा रहे हैं | हमारे बराबर नहीं हैं वो | उनका न तो खुद का लेखन स्तर है और न पढने का | सभी को हिंदी लिखने को प्रेरित करे चले जा रहे हैं | बहुत बुरा लगता है |

  13. मीनाक्षी कहते हैं:

    सबको प्रणाम …पठन-पाठन और लेखन में हमसे अधिक अनुभवीजन से प्रशंसा पाकर अतीत में चले गए जब ‘उत्तम’ पाकर छात्रों के चेहरे खुशी से चमक उठते. आप सबका बहुत बहुत शुक्रिया… @डॉ.अमर,हम गए भी उस ओर जहाँ आप कॉफी का आनन्द ले रहे थे…पता नही कैसे आप पीछे छूट गए.. गलती के लिए क्षमा कीजिएगा…

  14. बहुत बढ़िया अंदाज़ लगा या चर्चा का मीनाक्षी जी के लफ्जों में ..

  15. अभिषेक ओझा कहते हैं:

    बिलकुल नया इनोवेटिव अंदाज पसंद आया… हम तो ‘अति उत्तम’ देते हैं !

  16. हिमांशु । Himanshu कहते हैं:

    बिलकुल मन की ही बात हो गयी यहाँ । सोच ही रहा था कि टिप्पणियों के माध्यम से कुछ एक्सपोज किया जाय चिट्ठाकारों को- लेकिन मैं तो सोचता ही रहा । यहाँ यह चर्चा पढ़कर अच्छा लगा । टिप्पणियों का आश्रय लेकर की जाने वाली चर्चा का एक दिन तय कर दिया जाना चाहिये और उसकी बागडोर लेने के लिये मीनाक्षी जी हैं ना । अभिनव चर्चा-प्रयोग के लिये बधाई ।

  17. Shiv Kumar Mishra कहते हैं:

    बहुत बढ़िया.आप चिट्ठाचर्चा कार ज़रूर बनिए.हिमांशु जी से भी निवेदन है कि वे चिट्ठाचर्चा में अपना योगदान दें. बहुत अच्छा रहेगा.

  18. चर्चा का यह नवीनतम स्वरूप बढिया रहा….आभार

  19. डॉ .अनुराग कहते हैं:

    इसे कहते है झकास….बीडू …आईला अश्लील तो नहीं हो गया बीडू …

  20. अनूप जी,बहुत अच्छा प्रस्ताव है, चर्चा और व्यापक हो जावेगी। आपकी एक चर्चा टिप्पणीकारों को समर्पित कर बहुत नेक काम किया, मेरा भी उत्साह बढा है कि जहाँ तक संभव हो सभी जाने पहचाने ब्लॉगर्स से सबंध बनाये रखूं.सादर,मुकेश कुमार तिवारी

  21. ajay kumar jha कहते हैं:

    meenu didi,saadar abhivaadan. badhai ho charchaamandalee mein shamil hone ke liye. aur aaj kee charchaa dekh kar koi nahin keh sakta ki ye aapkee pehlee charchaa hai. badhiyaa laga. tripadm kee shuruaat ke liye shukriya, sneh banaaye rakhein.

  22. कुश कहते हैं:

    bahut hi umda.. chittha charcha mein vividh prayog is manch ko aur rochak banate ja rahe hai.. meenakshi ji ko bahut bahut badhai..

  23. आजकल राजनीति बहुत है और जूता भी बहुत है ब्लॉगों पर। ऐसे में यह “पुरानी – पोस्ट” चर्चा ज्यादा नई दिख रही है। अभिषेक ओझा की खाना बनाने वाली पोस्ट देख कर मन होने लगा कि ब्लॉगिंग बन्द कर किचनोन्मुखी हुआ जाये। 🙂

  24. ‘अति उत्तम’ !! अरे वाह ..स्वागतम्` शुभ स्वागतम …

  25. गौतम राजरिशी कहते हैं:

    चरचे की इस नयी रेसिपी से उठती सुगंध मोहक है

  26. anitakumar कहते हैं:

    मिनाक्षी जी बधाई, बढ़िया प्रस्तुति,

  27. यहां पर बधाई देनी रह गई थीजब अग्रिम बधाई सकते हैं देतो अतीत बधाई भी स्‍वीकार हो

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