सुबह का इन्तज़ार बेहद ज़रूरी है

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22 Responses to सुबह का इन्तज़ार बेहद ज़रूरी है

  1. Tarun कहते हैं:

    bahut khoob, do stambh khaskar pasand aaye, abhilekhagar aur stri-lekhan jisme aapne ek stri blogger ki charcha kari.

  2. विनय कहते हैं:

    बहुत बढ़िया, दुनिया भर से सब कुछ एक पेज पे उतार लाये—मेरा पृष्ठचाँद, बादल और शाम

  3. अनूप शुक्ल कहते हैं:

    सुन्दर चर्चा। आपकी चर्चा के माध्यम से चिट्ठाचर्चा का उद्देश्य दुनिया की किसी भी भाषा के चिट्ठे की चर्चा का प्रयास। पूरा होता दिखता है। संजय बेंगाणी कभी हमारे नियमित चर्चाकार थे। अब फ़िर कब सक्रिय होंगे! स्त्री चिट्ठाकार के बारे में लिखने की शुरुआत अच्छी लगी।

  4. हिमांशु कहते हैं:

    आपकी चर्चा की खासियत इसका बहुसन्दर्भित होना है. अभिलेखागार से प्रस्तुत चर्चा स्थायी महत्व की चर्चा मालूम पड़ती है. कारण उसका विधान है. अन्य भाषाओं के चिट्ठों की चर्चा ने मुग्ध तो किया, पर काश! पूरे-पूरे सम्बन्धित भाषा के उद्धरणों के साथ हिन्दी में उनकी अर्थ-प्रतीति हो पाती!जैसे, आपने मराठी कि जिस कविता से समापन किया है, उसका अर्थ मैं नहीं समझ पा रहा, क्योंकि मराठी मुझे नहीं आती. तो यह विभिन्न भाषा के चिट्ठों की चर्चा क्या सम्बन्धित भाषा के जानकारों या पाठकों के लिये ही है? हिन्दी यदि सेतु-भाषा बन जाय तो कितना कल्याण हो ?कुल मिलाकर मैने इस चर्चा में विधु जी की कविता का प्रभाव महसूस किया- अपने स्तर पर, और आपकी बहुपठनीयता और बहुज्ञता से चमत्कृत भी होता रहा. धन्यवाद.

  5. आप सभी को लोहिड़ी, संक्रान्ति व पोंगल की अनेकानेक शुभकामनाएँ!!!सुन्दर चर्चा। आपकी चर्चा के माध्यम से चिट्ठाचर्चा का उद्देश्य दुनिया की किसी भी भाषा के चिट्ठे की चर्चा का प्रयास…..पूरा होता दिखता है।

  6. Reetesh Gupta कहते हैं:

    पंजाबी के अमर रचनाकार स्व.शिवकुमार बटालवी जी ने ठीक कहा…हम एक आराम मौत ही मर रहें हैं….कमाल के कवि से मिलवाया आपने ….धन्यवाद

  7. जितेन्द़ भगत कहते हैं:

    वि‍धु जी से परि‍चय कराने के लि‍ए आभार, उनकी कवि‍ता काफी अच्‍छी लगी।

  8. Gyan Dutt Pandey कहते हैं:

    शिवकुमार बटालवी के वीडियो के लिये धन्यवाद।

  9. डा. अमर कुमार कहते हैं:

    ख़ुश आमदीद मोहतरमा कविता जी !बेशक ताज़गी और इन्तेहाई से लबरेज़ ज़िक्र-ए-ब्लागरान..ग़र ज़ाँ की सलामती बख़्शें तो, इस बिरादरी में औरत मर्द का तक्सीम औ’ अलग ज़िक्र मेरी निगाह में वाज़िब नहीं ! खुल्रे नज़रिये से देखें, महज़ ज़िस्मानी तफ़रके की बिना पर यह दकियानूसी औ’ ग़ैर-ज़रूरी है !

  10. अनिल कान्त : कहते हैं:

    vidhu ji ka parichay kaafi achchha raha ..unki kavitayein bhishukriya

  11. ताऊ रामपुरिया कहते हैं:

    बहुत विस्तृत चर्चा. एक अलग ही रंग है, मजा आया. सक्रांति की सबको घणी रामराम.

  12. डॉ .अनुराग कहते हैं:

    एक नई हवा की तरह ताजगी भरी चर्चा ,विधु जी का तो खैर मै शुरू से ही फेन रहा हूँ …उन्हें यहाँ देखकर अच्छा लगा….

  13. Shiv Kumar Mishra कहते हैं:

    शानदार!बटालवी जी के विडियो के अलावा बाकी के भाषाओँ के चिट्ठों की चर्चा बहुत खूब रही. मराठी कविता को एक बार पढ़ा है. शायद एक बार और पढ़ने से कुछ और समझ में आए.

  14. ऋषभ कहते हैं:

    प्रतीक्षा है सूर्ये के उत्तरायण होने की..अस्थियों में पैठा मरणान्तक अवसाद तब शायद कुछ पिघले.अशुभ जो अभी अभी छूकर गुज़र गया .उसकी छायाओं पर संक्रांति की शुभ कामना की धूप…….. जी हाँ, सुबह का इन्तज़ार बेहद ज़रूरी है हमें भी है.बटालवी के चित्र और स्वर ……अवाक् करने के लिए काफी हैं.राजस्थानी, भोजपुरी और मराठी की प्रविष्टियों की चर्चा स्वागतेय है.यह क्रम बना रहे तो बेहतर होगा.देवनागरी में यदि अन्य भी भाषाओं की सामग्री पढने का अवसर मिलता रहे तो भी भाषाओं के सांस्कृतिक नाभि नाल सम्बन्ध का अहसास होता रहेगा. नेशनल बुक ट्रस्ट के विजयवाडा मेले की और चर्चा अपेक्षित थी.[प्रसंगवश ही सही].तानाबाना पर टिप्पणी सार गर्भित और सार्थक है.स्त्री लेखन की विशेष चर्चा को अलग खांचा बनाने के रूप में नहीं,चर्चाकार की प्राथमिकता के रूप में ग्रहण किया जाना उचित होगा. फिलहाल इतना ही.\\इति विदा पुनर्मिलनाय \\

  15. Udan Tashtari कहते हैं:

    ऐसा वहृद विस्तार चर्चा का देख अभिभूत हूँ-अद्भुत!! वाकई, गजब कवरेज और गजब की मौलिकता. वाह!!ऐसे ही बनाये रहें, शुभकामनाऐं.

  16. विवेक सिंह कहते हैं:

    अमर कुमार जी की टिप्पणी के शेयर खरीदना चाहता हूँ :)चन्द्रमौलेश्वर जी की कमी महसूस कर रहा हूँ !

  17. गौतम राजरिशी कहते हैं:

    वाह …आपकी चरचा हर बार इतना कुछ समेटे आती है कि उलझ जाता हूं किसे देखूं किसे छोड़ूं

  18. एक विस्तृत फलक को समेटती हुई यह चर्चा बेहद परिश्रम और उत्साह से की गयी है। हम इसका स्वागत करते हैं। अलग-अलग स्तम्भों के माध्यम से विषयों का प्रस्तुतिकरण अच्छा बन पड़ा है। चर्चाकार को यह छूट तो देनी ही चाहिए कि वह अपनी समझ से जिसे उपयुक्त समझे उसे इस मंच पर लाकर हमसे परिचित कराए। वैसे डॉ.अमर कुमार जी का एतराज इस चर्चा में एक सार्थक तत्व जोड़ता है। इस एतराज पर किसी को एतराज नहीं होना चाहिए।कविता जी के ही इन शब्दों में मेरी भी शुभकामनाएं आप सभी के लिए- “आप सभी को लोहिड़ी, संक्रान्ति व पोंगल की अनेकानेक शुभकामनाएँ। आप के जीवन में सूर्य का उजाला फैले, सारा अन्धेरा हर ले व नए उल्लास से आप सभी का जीवन ओतप्रोत कर दे।”

  19. cmpershad कहते हैं:

    विवेकजी, आपने याद किया- आभारी हूं। सौभाग्य कि सभी का स्नेहपात्र बना।

  20. Vivek Gupta कहते हैं:

    सुंदर जानकारी | मकर संक्रांति की शुभकामनाएं |

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